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काम नहीं आ रहा राजनीतिक प्रेम

नीतीश कुमार की यह खासियत है कि वे किसी समय राम मनोहर लोहिया, जेपी और कर्पूरी ठाकुर के चेले बन जाते हैं तो किसी समय दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी के गुणगान करने लगते हैं। कुछ समय पहले वे पटना में दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर उनकी प्रतिमा पर फूल चढ़ाने गए। पिछले एक हफ्ते में वे अटल बिहारी वाजपेयी और अरुण जेटली को श्रद्धांजलि देने गए। एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा नेताओं की खूब तारीफ की और वहां मौजूद नेताओं को दिखा कर कहा कि उनके साथ तो जीवन भर का संबंध है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनका भाजपा प्रेम बहुत काम नहीं आ रहा है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पिघल नहीं रहा है और इस वजह से नीतीश को अच्छी डील नहीं मिल रही है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा इस बार न तो बराबरी का समझौता करने को तैयार है और न उनको मुख्यमंत्री रखने को तैयार है। पिछली बार यानी २०१७ में जब नीतीश वापस लौटे थे तब भाजपा ने अपनी जीती हुई लोकसभा की छह सीटें छोड़ कर नीतीश से समझौता किया था। दोनों पार्टियां १७-१७ सीटों पर लड़ी थीं। और भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री भी बनाए रखा था।
इस बार कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनसे कहा है कि वे मुख्यमंत्री पद छोड़ें, भाजपा का सीएम बनेगा और नीतीश अपना दो उप मुख्यमंत्री बना लें। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनको १० लोकसभा सीट का प्रस्ताव दिया है। इसमें ज्यादा से ज्यादा दो की बढ़ोतरी हो सकती है। भाजपा अकेले २० सीटों पर लडऩा चाहती है और लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़ों, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनता दल को गठबंधन में बनाए रखना चाहती है। वह मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को भी गठबंधन में लाने की बातचीत कर रही है।
इसके अलावा भाजपा लोकसभा के साथ विधानसभा का चुनाव कराने को तैयार नहीं है। इस तरह वह नीतीश को कमजोर करने की सुनियोजित रणनीति पर काम कर रही है।

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