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विदत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन! स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!

विदत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन!
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!

अर्थात् एक राजा और विद्वान की कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि एक राजा को केवल उसके राज्य में सम्मान मिलता है वहीं एक विद्वान को हर जगह सम्मान मिलता है।

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