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ब्रिटेन: कुआं और खाई!

उनके अपने देश में कल का कोई ठिकाना न था। इसलिए वे एक बेगाने देश में गए। लेकिन वहां भी उनका कोई ठिकाना नहीं है। अमेरिका, यूरोप या ब्रिटेन में शरण चाहने वाले लगभग सभी लोगों की कमोबेश यही कहानी है। ब्रिटेन में यह अनिश्चितता और ज्यादा कष्टपूर्ण बन गई है। ऋषि सुनक की सरकार दुनिया भर से ब्रिटेन आने वाले शरणार्थियों को मध्य अफ्रीका भेजने की योजना पर दृढ है।
इस योजना की शुरूआत २०१० में हुई थी। कंजरवेटिव सत्ता में आए और उन्होंने वायदा किया कि शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि की दर सालाना एक लाख से कम की जाएगी। सन २०१६ में ब्रेक्स्टि के बाद ब्रिटेन की सीमाओं पर ब्रिटेन का पूर्ण नियंत्रण दुबारा कायम हुआ। सन् २०१९ में कंजरवेटिव पार्टी के घोषणापत्र में शरणार्थियों की संख्या कम करने का संकल्प एक बार फिर व्यक्त किया गया, हालांकि इस बार कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया। युद्ध, अकाल और जलवायु संबंधी समस्याओं के चलते ब्रिटेन में बसने वालों की संख्या बढ़ती गई। सन् २०२२ में यह आंकड़ा ७४५,००० था। इसी का नतीजा है कि ऋषि सुनक की सरकार मुखर होकर इस मुद्दे पर बोल रही है और इस संख्या को घटाने के लिए दृढ़ है।
दुनिया में आप्रवासन एक संवेदनशील मुद्दा है जिसे लेकर लोग जज्बाती हैं और जो वोट दिलाता है। यूगव (ब्रिटेन स्थित एक डाटा फर्म) के मुताबिक, इस वक्त ब्रिटेन के ४० प्रतिशत लोग आप्रवासन और शरणार्थियों संबंधी मसलों को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं जबकि २०२१ की शुरूआत में उनका प्रतिशत २० से भी कम था।
पिछले महीने यूके के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शरणार्थियों को मध्य अफ्रीका भेजने के निर्णय का आधार एक समझौता मात्र है और किसी देश से इस बारे में संधि नहीं की गयी है, अत: यह गैर-कानूनी है। ऋषि सुनक ने कहा है कि वे न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने का रास्ता ढूंढ रहे हैं। हालांकि आलोचकों का कहना है कि इस नीति का असली मकसद है कंजरवेटिव काल में शरणार्थियों के अनसुलझे मामलों के भारी बैकलॉग से लोगों का ध्यान हटाना। इसका नतीजा यह हुआ है कि शरणार्थियों पर करदाताओं का लगभग ४.८ अरब डालर व्यय हो रहा है – जो आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में दुगना है।
बीते मंगलवार को गृहमंत्री जेम्स क्लेवरली ने किगाली की यात्रा की जहां उन्होंने रवांडा की सरकार के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए। यह चुनावी माहौल बनने के पहले शरणार्थी संकट पर काबू पाने का प्रयास था। क्लेवरली ने यह भी कहा कि आगामी वसंत से वर्क वीजा चाहने वालों को साल में ३८,७०० पौंड कमाने होंगे। यह राशि पहले २६,२०० पौंड थी। जिन क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी के चलते वीजा संबंधी छूटें थीं उनका पुनरावलोकन किया जाएगा और विदेशी जीवनसाथी और आश्रितों को ब्रिटेन आने देने संबंधी नियम भी कड़े किए जाएंगे।
ये सारे नए प्रस्ताव ब्रिटिश लोगों को पसंद नहीं आ रहे हैं – उन्हें भी नहीं जो कड़ी आप्रवासन नीतियों के हामी हैं। रवांडा संबंधी नीति भी अलोकप्रिय है। जनता को लगता है कि अप्रवासियों से निपटने के लिए उन्हें जबरदस्ती अफ्रीका जाने वाले विमानों में बैठाने का निर्णय लागू करने लायक नहीं है। वे इस बात से भी चिंतित हैं कि इन नए प्रस्तावों के चलते श्रमिकों की कमी हो जाएगी। जीवनसाथियों से संबंधित वीजा नियम कड़े करने से गरीब, युवा और दक्षिण-पूर्व के अलावा अन्य क्षेत्रों के लोगों में आक्रोश है। और भय यह है कि जितने लंबे समय तक यह मूर्खता जारी रहेगी, उतने ही अधिक समय और ऊर्जा की बर्बादी होगी। इस योजना को लोगों को उनके देश भेजने की पुरानी योजनाओं से जोड़ा जायेगा, जिससे अंधराष्ट्रवाद और विदेशियों के प्रति फोबिया को बढ़ावा मिलेगा।
कुल मिलाकर ब्रिटेन दुविधा में है। एक तरफ है घटिया नीति का कुआँ और दूसरी तरफ भोंडी राजनीति की खाई।

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