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किसिंजर नायक थे तो खलनायक भी!

कुछ के लिए वे परम पूजनीय थे, तो कुछ उन्हें गालियां देते थे। कुछ के लिए वे उपहास के पात्र थे तो कुछ के लिए श्रद्धा के। और यह आज की बात नहीं है, दशकों पहले भी ऐसा ही था और २०२३ में भी ऐसा ही था। हेनरी किसिंजर थे ही ऐसे।
बुधवार २९ नवंबर (२०२३) को हेनरी किसिंजर ने अमेरिका में अंतिम सांस ली।वे इस देश के लिए बाहरी और अप्रवासी थे। वे होलोकॉस्ट (यहूदियों का नरसंहार) का शिकार होने से बच कर अमेरिका पहुंचे थे।

किसिंजर का करियर काफी गौरवशाली और चमकीला रहा। वे राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के कार्यकाल में पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और फिर विदेश मंत्री रहे। उसी दौरान वे २०वीं सदी के नायक और खलनायक दोनों बने। यही कारण है कि उनकी मृत्यु के बाद जो ढेर सारी श्रद्धांजलियां उन्हें दी गईं है उनमें भी एक तरह का गुस्सा झलक रहा है। बीबीसी के ओबिट का शीर्षक था “बांटने वाला राजनयिक जो दुनिया पर छाया रहा।” अल जजीरा ने उन्हें नोबल पुरस्कार विजेता ‘युद्धोन्मादी’ कहा।
टाईम पत्रिका ने किसिंजर के अवसान को “प्रभावशाली और दुनिया को ध्रुवीकृत करने वाले अमरीकी विदेश मंत्री की मौत बताया”। इकोनोमिस्ट ने टिप्पणी की ‘हैनरी किसिंजर कभी वह न बने सके जो वे बनना चाहते थे। अमेरिकी कूटनीति के दिग्गज का २९ नवंबर को १०० वर्ष की आयु में देहांत हो गया”।

इनमें से प्रत्येक शीर्षक उनके करियर और उनकी विरासत के बारे में और हैनरी किसिंजर किस तरह के व्यक्ति थे, इसपर प्रकाश डालता है। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति, जो एक कुटिल कूटनीतिज्ञ और दिलचस्प वक्ता था, जो अपनी नकसुरी आवाज़ में अपने मतलब की बात करना कभी नहीं भूलता था, जिसने भला भी किया और बुरा भी और जिसने इतिहास में अपनी जगह खुद बनाई। और चाहे आपको यह सही लगे या गलत, उन्हें १९७३ में नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया जिससे उनका एक विश्वप्रसिद्ध सितारे का दर्जा बना।

उस दौर में हर कोई किसिंजर बनना चाहता था और आज भी हर कोई किसिंजर बनने का अरमान रखता है।उन्होंने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शांति बनाए रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, वाशिंगटन और कम्युनिस्ट चीन के बीच निकट संबंध कायम करने वाले वे ही थे, मिस्र और इजराइल के बीच शांति समझौते में उन्होंने ही मध्यस्थता की, और उत्तरी वियतनाम से चली लंबी वार्ताओं में अमरीकी दल के प्रमुख भी वे ही थे, जिसके नतीजे में अमरीकी सेनाएं इंडोचाईना से लौटा। और विदेशी भूमि पर अमेरिका द्वारा लड़ा गया सबसे लंबा युद्ध समाप्त हुआ।

अप्रवासी किसिंजर ने अमेरिका में जो कद और राजनैतिक प्रभाव हासिल किया वह न तो उस काल में और न ही वर्तमान दौर में कोई अप्रवासी कर पाया। वे शरणार्थी के रूप में अपने अतीत की चर्चा बहुत कम करते थे।उन्होंने एक साक्षात्कार कर्ता से कहा था कि वे उनके विचारों और उनके बचपन के बीच कोई मनोविश्लेषणात्मक संबंध होने की बात को खारिज कर दें। हालांकि कईयों का यह तर्क था कि नाजीवाद की विभीषिका को व्यक्तिगत रूप से भोगने के कारण, क्रान्तिकारी परिवर्तनों की सम्भावना से वे दहशत में आ जाते थे। तभी दुनिया के हालात के उनके विश्लेषण में एक ख़ास तरह का नैराश्य झलकता था।

यद्यपि किसिंजर को अक्सर देशों के अपने-अपने स्वार्थों और शक्ति संतुलन पर आधारित वैश्विक व्यवस्था पर दृढ़ विश्वास रखने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता था, लेकिन दिल से वे अपना जीवन अपने तरीके से जीने के अमेरिकी आदर्श के प्रति पूर्णत: समर्पित थे। वे जिस देश में बसे, उन्हें उससे बहुत प्यार था और बदलती हुई दुनिया में अमेरिकी दबदबा कायम करने के प्रति उनमें मिशनरी उत्साह कूट-कूटकर भरा हुआ था। लेकिन इस उत्साह के बावजूद, और कूटनीतिक और रणनीतिक कौशल के बाद भी, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस, बांग्लादेश, चिली, अर्जेन्टीना, पूर्वी तिमोर और साईप्रस आदि के दुनिया के सबसे असहाय लोगों के प्रति उनकी ‘दुष्टतापूर्ण निर्ममता’ ने उनकी छवि और विरासत पर कालिख पोत दी।
उन्होंने कम्बोडिया पर एक गुप्त जमीनी हमले का समर्थन किया, जो मई १९७० में शुरू हुआ। दिसंबर १९७० में जब निक्सन ने कहा कि अमेरिकी हवाई बमबारी अपर्याप्त है तो किसिंजर ने ‘कंबोडिया पर जबरदस्त हवाई हमले का अभियान’ चलाने का आदेश दिया। नागरिक और सैनिक लक्ष्यों के बीच अंतर को नजअंदाज करते हुए किसिंजर ने कहा ”हर चलती और उड़ती चीज पर हमला करो। समझ आया?”
उनके जीवन का सबसे चर्चित अध्याय १९७१ में प्रारंभ हुआ, जब बांग्लादेश, जो शीत युद्ध के उस दौर में अमेरिका के महत्वपूर्ण मित्र देश पाकिस्तान का पूर्वी भाग था, में नरसंहारों की श्रृंखला के दौरान किसिंजर पूरी दृढ़ता से पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही के साथ खड़े रहे।वह शीत युद्ध के काल के सबसे भयावह अत्याचारों में से एक था – जिसपर बाद में उन्होंने लीपा-पोती करने का प्रयास किया।इसी कारण व्हाईट हाऊस के टेपों के कुछ सबसे संवेदनशील हिस्सों को राष्ट्रीय सुरक्षा को सुरक्षित रखते का खोखला बहाना बनाकर कई दशकों उन्हे गुप्त रखा गया।

सन् १९८० आते-आते किसिंजर राजनैतिक गलियारों से गायब होने लगे। चुनाव जीतने के बाद रोनाल्ड रीगन, किसिंजर की छवि और उनके व्यक्तित्व की क्षमताओं को लेकर असहज रहते थे। उनकी यथार्थवादी सार्वजनिक शख्सियत और रीगन और उनके सहयोगियों की कम्युनिज्म विरोधी जंग और सोवियत विस्तारवाद संबंधी दावों के बीच पटरी नहीं बैठ पाई। रीगन की टीम इस विचारधारा की थी कि तनाव शैथ्लिय के काल में सोवियत नेता ब्रेजनेव से बने उनके संपर्कों से तुष्टिकरण की बू आती है।

लेकिन किसिंजर एक सच्चे देशभक्त थे, वे एक दृढ़ और कुशाग्र राजनैतिक और रणनीतिक बुद्धि वाले व्यक्ति थे। ८० वर्ष से अधिक आयु में, सोवियत संघ के पतन के बाद के दौर में वे जार्ज डब्लू बुश के नजदीकी सलाहकार बने, और उन्होंने ईराक पर उनके हमले का समर्थन किया। अपनी १००वीं वर्षगांठ के ठीक पहले ‘द इकोनॉमिस्ट’से अपनी अंतिम विस्तृत चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे अमेरिका और चीन की प्रतियोगिता को एक विनाशकारी युद्ध का रूप लेने से रोका जा सकता है।उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन को मिलकर रहना सीखना होगा क्योंकि दोनों के पास दस साल से भी कम का समय है।

किसिंजर हमेशा याद रहेंगे। उनकी चर्चा होगी। उनकी किताबें, उनके लेख, उनके अनुभवों को दोहराने की कोशिशें होंगी। उनका तिरस्कार भी होगा लेकिन उनकी प्रशंसा भी होगी। अमेरिकी समाज उन्हें स्नेह करेगा और वे चीनियों के हमेशा प्यारे रहेंगे (अमेरिका-चीन टकराव के हालिया दौर में उन्होंने कुछ दिन पहले चीन की यात्रा की थी)। ऐसा ही सारी दुनिया और उनके द्वारा किए गए हर काम के संबंध में होगा। उनकी मृत्यु के बाद वे बदनाम किये जाएंगे, क्योंकि हैनरी किसिंजर के १०० साल के जीवन के संदर्भ में एक बात पूरे मायने रखती है – नाजीवाद के घाव कभी नहीं भरे, क्योंकि वे हमेशा किसी भी कीमत पर एक ऐसे विश्वयुद्ध को टालना चाहते थे जिसके चलते उन्हें जर्मनी छोडऩा पड़ा और जिसमें उनके परिवार के आधे सदस्य मारे गए।

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