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भाजपा भी जाति की राजनीति के खेल में शामिल

भारतीय जनता पार्टी व्यापक रूप से जाति की राजनीति को हिंदुत्व की राजनीति का विरोधी मानती रही है। तभी वह जातीय समीकरण बनाने, सोशल इंजीनियरिंग करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जाति बता कर वोट मांगने के बावजूद एक बड़ा नैरेटिव हिंदुत्व का बना कर रखती है। उसके दायरे में ही वह जाति की राजनीति करती है। कह सकते हैं कि उसकी बारीक राजनीति जाति के प्रबंधन वाली होती है और बड़ी राजनीति हिंदुत्व की होती है। परंतु अब कांग्रेस और उसके गठबंधन की पार्टियों द्वारा जाति के मुद्दे को राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बना देने के बाद लगता है कि भाजपा भी खुल कर यह राजनीति करेगी। तभी यह राजनीति का बिल्कुल नया और बहुत दिलचस्प दौर होगा, जिसमें मंडल और कमंडल की राजनीति का टकराव नहीं होगा, बल्कि मंडल की राजनीति का स्पेस लेने के लिए विपक्षी गठबंधन ‘इंडी’ और भाजपा गठबंधन एनडीए के बीच टकराव होगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाल के दो भाषणों से इसका बहुत स्पष्ट संकेत मिला है। उन्होंने पहले छत्तीसगढ़ की एक रैली में कहा कि भाजपा जाति गणना की विरोधी नहीं है। इसके बाद वे बिहार में भाजपा की एक रैली को संबोधित करने गए तो बहुत खुल कर जाति की राजनीति पर बोले। उन्होंने कहा कि बिहार में जाति गणना का फैसला हुआ तो भाजपा भी राज्य सरकार का हिस्सा थी और इस वजह से यह फैसला भाजपा का था। यह बात पहले बिहार प्रदेश के भाजपा के नेता कह रहे थे। पहली बार अमित शाह ने खुल कर जाति गणना की बात की और उसका श्रेय भाजपा को दिया। सो, छत्तीसगढ़ और उसके बाद बिहार में उनके भाषण से यह अंदाजा हो रहा है कि भाजपा अगले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन का मुकाबला करने के लिए उसकी पिच पर जाकर खेलने की तैयारी कर रही है।
ध्यान रहे अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री हैं और जनगणना का मुद्दा उनके मंत्रालय के तहत आता है। उन्होंने कहा हुआ है कि २०२१ की जनगणना २०२४ के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद होगी। सवाल है कि क्या वे लोकसभा चुनाव से पहले यह घोषणा कर सकते हैं कि अगली जनगणना में जातियों की गिनती होगी? अगर वे इसकी घोषणा करते हैं तो यह गेमचेंजर साबित हो सकता है।
राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना में अगर जातियों की गिनती होती है तो राज्यवार हो रही जाति गणना स्थगित हो जाएगी। राज्यवार जातियों की गणना का ऐलान करके पार्टियां अपने अपने समर्थक समुदाय को साधने की राजनीति कर रही हैं। जनगणना में जाति गिनने की घोषणा इस राजनीति पर विराम लगा देगी।
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा और हिंदुत्व के दूसरे मुद्दों के साथ साथ अगर भाजपा पिछड़ी व अन्य पिछड़ी जातियों की राजनीति को ध्यान में रखते हुए जाति गणना की घोषणा करती है तो वह विपक्षी गठबंधन को उसकी राजनीति के मैदान में घुस कर चुनौती दे सकती है।
ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। जनगणना में जातियों की घोषणा चुनाव से पहले होगी या उसके बाद में होगी यह तो आने वाले समय में पता चलेगा लेकिन जिस अंदाज में भाजपा को ओबीसी का हितैषी बताने का अभियान चल रहा है उससे लग रहा है कि भाजपा अब मंडल की राजनीति कर रही पार्टियों को उनके मैदान में उतर कर चुनौती देना चाहती है। असल में कांग्रेस ने भाजपा को इस राजनीति के लिए मजबूर किया। इससे पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां जाति की राजनीति से दूर रहती थीं। लेकिन जब से नीतीश कुमार ने राहुल गांधी को समझाया कि जाति गणना करा कर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की घोषणा की जाए तो भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति को चुनौती दी जा सकती है और राहुल ने इस पर अमल शुरू किया तभी से भाजपा की मजबूरी हो गई कि वह भी इस तरह की राजनीति करे।
इस राजनीति के तहत भाजपा पिछड़ी जातियों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए कामों को हाईलाइट कर रही है। अमित शाह ने बिहार के मुजफ्फरपुर में बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया। पहले एससी और एसटी कमीशन को तो संवैधानिक दर्जा था लेकिन ओबीसी आयोग वैधानिक निकाय था, जिसको मोदी सरकार ने संवैधानिक दर्जा दिया है। शाह ने यह भी बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने मेडिकल में दाखिले की परीक्षा में केंद्र सरकार के कोटे में ओबीसी समुदाय को २७ फीसदी आरक्षण दिया। नवोदय और सैनिक स्कूलों में पहली बार ओबीसी के छात्रों को आरक्षण दिया गया। शाह ने बताया कि मोदी सरकार में २७ ओबीसी मंत्री हैं यानी ३५ फीसदी मंत्री ओबीसी समुदाय के हैं। ओबीसी के लिए वेंचर कैपिटल फंड की व्यवस्था पहले से की गई थी और इस साल लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानंमत्री मोदी कारीगरों के लिए विश्वकर्मा योजना का ऐलान किया था, जिसे लागू कर दिया गया है। इसका फायदा अत्यंत पिछड़ी जातियों को होगा। इतना ही नहीं राजीव गांधी नेशनल फेलोशिप के तहत पहली बार ओबीसी छात्रों को आरक्षण दिया गया। जब से राहुल गांधी ने ओबीसी का राग अलापना शुरू किया तब से मीडिया में कई बार यह खबर आ चुकी है कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा ने दोगुने ओबीसी मुख्यमंत्री बनाए हैं। ये सारे तथ्य भाजपा की ओर से जनता को बताए जा रहे हैं।
भाजपा ने जाति की राजनीति में हाथ आजमाने के लिए यह भी चुन लिया है कि कौन सी जातियां उसके साथ जुड़ सकती हैं। जैसे बिहार में अमित शाह ने यादव को मुस्लिम के साथ जोड़ कर कहा कि जाति गणना में दोनों की आबादी को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है और इससे अत्यंत पिछड़ी जातियों की संख्या कम कर दी गई है। जाहिर तौर पर उन्होंने गैर यादव पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जातियों की राजनीति साधने के लिए यादव और मुस्लिम पर अटैक किया है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की यही रणनीति है। वहां भी गैर यादव पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ जुड़ता है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के आंकड़ों से यह साबित हुआ है कि अत्यंत पिछड़ी जातियों का रूझान भाजपा की ओर है। २०१९ के चुनाव में अत्यंत पिछड़ी जाति के दो में से एक वोट भाजपा को मिला है। अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन वोट के इस गणित को न बिगाड़े इसके लिए जरूरी है कि भाजपा भी जाति की राजनीति में उतरे। वह प्रधानमंत्री मोदी के नाम और ओबीसी के लिए किए गए उनके काम को आधार बना कर गैर यादव पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वोट को एकजुट करने की राजनीति करेगी। इसके लिए अगर जाति गणना की घोषणा करनी पड़े तो भाजपा वह भी करेगी।

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