नई दिल्ली ,०१ नवंबर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली और आसपास के राज्यों की सरकारों से वायु प्रदूषण को रोकने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देने वाले हलफनामे मांगे। न्यायमूर्ति एस.के. कौल, सुधांशु धूलिया और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने टिप्पणी की कि जमीनी स्तर पर हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिखाए गए कदम केवल कागजों पर हैं।
पीठ ने राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा दायर रिपोर्ट पर ध्यान दिया। सीएक्यूएम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दो-तीन वर्षों की तुलना में वायु प्रदूषण में ४० प्रतिशत की कमी आई है, जबकि फसल जलाना वायु गुणवत्ता खराब होने का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।
पीठ ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की संबंधित सरकारों से एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें वायु प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण हो।
इससे पहले १० अक्टूबर को, शीर्ष अदालत ने सर्दियों के मौसम के दौरान दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण और फसल अवशेष जलाने के मुद्दे के बारे में वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह की दलील पर संज्ञान लिया था। मामले की अगली सुनवाई ३१ अक्टूबर के लिए स्थगित करते हुए उसने सीएक्यूएम को इस बीच एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
सिंह प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित एक जनहित याचिका (पीआईएल) में एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) के रूप में सुप्रीम कोर्ट की सहायता करती हैं। हर साल, दिल्ली और पूरे एनसीआर को अक्टूबर से दिसंबर तक मुख्य रूप से फसल अवशेष जलाने के कारण वायु प्रदूषण का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
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