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करवाचौथ व्रत का पौराणिक ही नही वैज्ञानिक महत्व भी है

करवा चौथ का व्रत कठिन व्रतों में से एक है क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है। जिसका पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही किया जाता है। इस साल करवा चौथ के दिन बेहद ही शुभ संयोग बन रहा है। आइए जानते हैं इस शुभ संयोग के विषय में जो लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

वैदिक पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस साल चतुर्थी तिथि प्रारम्भ 31 अक्टूबर 2023, मंगलवार रात 09 बजकर 30 मिटन पर हो रहा है। वहीं, इसका समापन 01 नवंबर रात्रि 09 बजकर 19 मिनट पर होगा। ऐसे में करवचौथ का व्रत 01 नवंबर को किया जाएगा।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष करवा चौथ के दिन अद्भुत संयोग का निर्माण भी हो रहा है, जिसमें शिवयोग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सर्वार्थ सिद्धि योग में किया गया कार्य या पूजा शुभ फल प्रदान करती है। साथ ही इस दिन वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी भी मनाई जाएगी।

करवाचौथ व्रत का केवल धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है. व्रत या उपवास रखना अध्यात्मिकता के साथ ही मानसिक और शारीरिक प्रभाव से भी जुड़ा होता है। पौराणिक कथाओं में प्रत्येक उपवास का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार भी बताया गया है. उन्हें कर्मकांडों से इसलिए जोड़ा गया, ताकि जनसाधारण उपवास के महत्व को समझ सकें और उसे अपनाएं. उपवास में पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण करना आता है. कुछ व्रत में खाने-पीने पर रोक नहीं है और उसमे फलहार लिया जा सकता है लेकिन करवाचौथ या तीज जैसे व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता है. दोनों ही व्रत का अपना महत्व होता है. वैदिक या आध्यात्मिक व्रत की चर्चा यजुर्वेद के कर्मकांड में भी है.
हिंदू धर्म में चंद्रमा का बहुत महत्व है. यह सृष्टि, जीवन, भावनाओं, मनोदशा और मन के कई पहलुओं का दर्शाता करता है क्योंकि ये सभी किसी ना किसी रूप से चंद्रमा से जुड़े हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा मानसिक और भावनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. आकार में बढ़ता हुआ प्रकाशित चंद्रमा शुभ माना जाता है जबकि ढलता हुआ चंद्रमा अच्छा नहीं माना जाता. चंद्रमा को उसकी स्थिति और आकार के आधार पर शुभ-अशुभ मानने की परंपरा है.
करवाचौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। शरद पूर्णिमा से ही चांद की चांदनी यानी किरणों में औषधिय तत्वों का प्रभाव बढ़ जाता है इसलिए चंद्रमा की चांदनी का सेवन शरीर और ने़त्र के लिए लाभकारी माना गया है.

चंद्रमा मन का कारक एवं औषधियों को संरक्षित करता है। कार्तिक मास में औषधियों के गुण विकसित अवस्था में होते है। यह गुण उन्हें चंद्रमा से ही प्राप्त होता है। यह व्यक्ति के स्वास्थ्य और निरोगी काया को बनाता है। करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा को अघ्र्य देने का विधान इसी कारण है। इससे मानव को आयु, सौभाग्य और निरोगी काया की प्राप्ति होती है।

करवाचौथ का व्रत निर्जला होता है और इसका भी महत्व है. निर्जला उपवास करने से शरीर में नई ऊर्जा का प्रसार होता हैं तथा मनुष्य अपने शरीर पर नियंत्रण बना पाने में सक्षम होता हैं. ठंड की शुरुअता में अगर शरीर में जल का संतुलन सही रहे तो कई तरह की बीमारियों से मुक्ति मिलती है. एक तरह से निर्जला व्रत शरीर की शुद्धि होती है. शरीर में जमा सारा पानी यूरिन के जरिये बाहर आता है और जब जल ग्रहण किया जाता है तब नए जल शरीर में प्रवेश करते हैं. एक तरह से ये शरीर को डिटॉक्स करता है. इसलिए करवाचौथ का व्रत धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी रखता है. मौसम के बदलाव के कारण शरीर में धातुओं को संतुलित करने के लिए भी ये व्रत बहुत मायने रखता है।
बात करें करवा चौथ के व्रत की तो इसके पीछे भी एक ऐसी कथा छिपी है जिसकी चर्चा हम आज आपसे करने जा रहे हैं। आइये जानते हैं करवा चौथ के व्रत का प्रचलन कैसे और क्यों शुरू हुआ, इसकी कथा कब और किस समय सुनना शुभ होगा।
पौराणकि मन्यता के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार करवा के पति नदि में स्नान कर रहे थे। उस दौरान मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। करवा के पति ने अपने प्राण की रक्षा के लिए अपनी पत्नि को पुकारा। करवा के पतिव्रता धर्म का पालन करने से उनके सतीत्व में काफी शक्ति थी। करवा ने अपने पति के प्राण संकट में देख यमराज से अपने पति के प्राण के लिए प्रार्थना की। करवा के पतिव्रता होने के कारण यमराज ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कि और पूछा है देवी आप क्या चाहती हैं। इस पर करवा ने कहा मेरे पति के प्राण उस मगरमच्छ के कारण संकट में पड़े हैं। आप उसे मृत्यु दंड दे दीजिए। ऐसा कहने के बाद यमराज ने करवा से कहा कि उस मगरमच्छ की आयु अभी शेष बची है। तब करवा ने कहा कि यदि आप ने उस मगरमच्छ को मृत्यु दंड नहीं दिया तो में अपने तोपबल से आपको श्राप दे दूंगी।

करवा चौथ के व्रत की शुरुआत

करवा माता के ऐसा कहने पर यमराज के निकट में खड़े चित्रगुप्त सोच में पड़ गए और उसके सतीत्व के कारण उसकी कही बात को टाल भी न सके। तब उन्होंने यमराज से कहा आप मगरमच्छ को यमलोक बुला लें और उसके पति को चिरायु का वरदान दें। यमराज देवता करवा माता के पतिव्रता होने से बड़े प्रसन्न हुए और उनसे कहा कि आपने अपने तपोबल से अपने पति के प्राण संकट से बचाए हैं। में आपसे बहुत प्रसन्न हूं और में आज आपको वरदान देता हूं कि जो भी सुहागिन महिलाएं अपने पति के लिए आज के दिन यानी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन व्रत रखेंगी। उनके पति की आयु लंबी होगी और उनके सुहाग की रक्षा में स्वयं करूंगा।

करवा चौथ की कथा सुनने का समय

करवा चौथ की यह कथा अति पावन है। इस कथा को करवा चौथ के दिन सुनन बहुत शुभ माना जाता है। करवा माता की कथा सुनने के लिए यह कथा का पाठ करने के लिए सुहागिन महिलाओं को करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए। उसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। फिर करवा माता की तस्वीर पूजा घर में रख कर उनसे अपने पति की दीर्घ आयु की प्रार्थना करनी चाहिए। करवा चौथ की कथा सुनने के लिए सबसे सही समय अभिजीत मुहूर्त माना गया है। उस समय करवा चौथ की कथा सुनना या उसका पाठ करना दांमप्त्य जीवन के लिए सौभाग्यशाली होता है।

करवाचौथ पूजा विधि
करवाचौथ व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद स्नान करें। इसके बाद साफ-सुधरे और नए वस्त्र धारण करें। इसके बाद ईश्वर का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक और फलक पर करवा का चित्र बनाएं। शाम के समय फलक वाले स्थान पर चौकी लगाकर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और माता पार्वती संग भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

कैसे करें तैयारी
पूजा की थाली में दीप, सिंदूर, अक्षत, कुमकुम, रोली और मिठाई रखने के साथ-साथ करवे में जल भरकर रखें। पूजा के दौरान माता पार्वती को 16 श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। इसके बाद शिव-शक्ति और चंद्रदेव की पूजा करें। करवा चौथ व्रत की कथा जरूर सुनें। रात में चंद्रमा के निकलने के बाद छलनी के अंदर चंद्रमा को देखने के बाद चंद्रदेव की पूजा करें और अर्घ्य दें। इसके बाद आप व्रत का पारण कर सकती हैं।

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