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शांति को तरसता फिलिस्तीन

तीस साल पहले फिलिस्तीन और इजराइल के बीच ओस्लो शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। एक नई सुबह का उदय हुआ था और नए रिश्तों की शुरूआत व शत्रुता के समापन की उम्मीद जागी थी। वह अब एक सपना भर है। और दोनों पक्ष इस बात पर सहमत थे कि पांच साल बाद दोनों समुदाय संप्रभु राष्ट्रों में निश्चित सीमाओं के भीतर बस जाएंगे। और अंतरिम समझौता समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह कभी न हो सका।
तभी सात अक्टूबर को न केवल ओस्लो समझौते का पूरी तरह खात्मा हो गया बल्कि भविष्य में किसी समझौता वार्ता की संभावना भी समाप्त हो गई। आने वाले दिनों और महीनों में घटनाक्रम क्या रूख लेगा, यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन यह एक लंबे युद्ध की शुरूआत है।
बेंजामिन नेतन्याहू ने ”एक बड़ी कीमत” वसूलने का संकल्प व्यक्त किया है। हमास को अपनी करनी का नतीजा भुगतना पड़ेगा और इस प्रक्रिया में उसके नेता इस्मायल हनिए और मोहम्मद डेफ या तो मारे जाएंगे या गिरफ़्तार किए जाएंगे। हमास के अधिकारियों का कहना है कि उनका संगठन भी लंबे युद्ध के लिए तैयार है। ज्यादातर कहर गाजा पर बरपाया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि वर्तमान में गाजा में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या सन् २०१४ के बाद से सबसे ज्यादा है। गाजा को पहले ही जीवन और रोजमर्रा की सारी मूलभूत सुविधाओं से महरूम कर दिया गया है। गाजा में नागरिकों की मौत को बहुत अनुचित व अन्यायपूर्ण माना जाएगा। इससे दुनिया में इजराइल की प्रतिष्ठा धूमिल होगी और यह वाकई बहुत गलत होगा। लेकिन इजराइल ने प्रतिशोध लेने और गाजा पर दुबारा कब्जा करने का संकल्प लिया है, भले ही इसके नतीजे में हमास उसके अपने लोगों की हत्या कर दे।
मध्य पूर्व लम्बे समय से शांति से वंचित रहा है और लगता है कि उसके सुकून के दिन कुछ, या शायद बहुत दूर खिसक गए हैं।

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