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भारत-कैनेडा के बीच विवाद: सरल नहीं समाधान

डॉ. एनके सोमानी

कैनेडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान ने भारत-कैनेडा संबंधों को इतिहास के सबसे निम्न स्तर पर ला दिया है।
हाउस ऑफ कॉमन्स में ट्रूडो ने जिस तरह से खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की कथित संलिप्तता की बात कही है, उससे भारत-कैनेडा संबंधों में तल्खी इस हद तक बढ़ गई है कि दोनों देश कूटनीतिक आक्रामकता पर उतर आए हैं। बात राजनयिकों से देश छोडऩे और नागरिकों के लिए परामर्श जारी करने भर तक नहीं रुकी। भारत ने तो सख्त कदम उठाते हुए कैनेडियन लोगों के लिए वीजा प्रक्रिया भी रोक दी है। कैनेडा से पहले इस तरह की कूटनीतिक तनातनी केवल पाकिस्तान के साथ ही रही है।
खालिस्तान का मसला भारत-कैनेडा संबंधों में दरार की बड़ी वजह रहा है। भारत कैनेडा सरकार से कहता रहा है कि खालिस्तानियों की गतिविधियों और उनकी फंडिंग पर रोक लगाए। लेकिन ट्रूडो सरकार ने कभी संज्ञान नहीं लिया। नतीजा यह हुआ कि कैनेडा की जमीन से खालिस्तानी डायस्पोरा खुले आम भारत को चुनौती देने लगे हैं। निज्जर सिख फॉर जस्टिस में नंबर दो की हैसियत रखता था। भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण भारत ने २०१९ से ही इस संगठन को प्रतिबंधित किया हुआ है। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स के नाम से भी एक गुट चलाता था। इस गुट के जरिए वह कैनेडा से बाहर अमेरिका, स्विट्जरलैंड ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में स्वतंत्र खालिस्तानी राष्ट्र की मुहिम चला रहा था। जून में कैनेडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के एक गुरुद्वारा परिसर में हुई गैंगवार में उसकी हत्या हो गई। ट्रूडो सरकार ने जांच समिति का गठन कर मामले की पड़ताल शुरू की। समिति की जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है, और न ही समिति ने कोई रिपोर्ट सरकार को दी है। लेकिन ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता की बात कह कर मामले को तूल दे दिया।
हालांकि, कैनेडा ने अपने आरोपों के संबंध में कोई सबूत साझा नहीं किया है लेकिन कैनेडियन मीडिया से आ रहीं खबरों के मुताबिक निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोपों की खुफिया जानकारी ओटावा के ‘फाइव आईज'(एंग्लोफोन इंटेलीजेंस शेयरिंग एग्रीमेंट) खुफिया नेटवर्क के एक सहयोगी देश से मिली सूचनाओं पर आधारित है। इस नेटवर्क में कैनेडा, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। सवाल है कि ‘फाइव आईज’ के किस देश ने कैनेडा को यह कथित जानकारी दी है। दूसरा, जो जानकारी कैनेडा को दी गई है, वो कितनी सत्य और विसनीय है, और उसकी सूचना का स्रोत क्या है। नेटवर्क में सम्मिलित देशों के साथ भारत के हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कैनेडा इन देशों के साथ भारत के संबंधों में किसी तरह की गलतफहमी डालना चाहता हो।
ब्रिटेन ने कैनेडा के आरोप को गंभीर बताया है। यह भी कहा है कि इस विषय पर ब्रिटेन की भारत के साथ चल रही व्यापार संबंधी चर्चा पर असर नहीं पड़ेगा। ऑस्ट्रेलिया ने आरोपों पर चिंता तो व्यक्त की है पर उसकी तरफ से भारत को असहज करने वाली कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। न्यूजीलैंड विवाद को दूर से देख रहा है। रही बात अमेरिका की तो अमेरिका भारत से जांच में सहयोग करने का अनुरोध कर रहा है। हालांकि, न्यूयॉर्क टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कैनेडा के अधिकारियों को ऐसी जानकारी उपलब्ध करवाई है, जिससे कैनेडा को यह निष्कर्ष निकालने में मदद मिली कि इसमें भारत का हाथ है। तो क्या अमेरिका भारत-कैनेडा संबंधों में कोई एंगल तलाश रहा है। २०१८ में ट्रूडो की भारत यात्रा के दौरान द्विपक्षीय बैठक में भी भारत ने यह मुद्दा उठाया था कि कैनेडा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। २०२० में किसान आंदोलन के दौरान भी ट्रूडो और उनकी सरकार की तरफ से बयानबाजी की गई। भारतीय राजनयिकों की हत्या करने की धमकी देने और भारत के वाणिज्य दूतावास पर हमला करने के बावजूद ट्रूडो सरकार ने अपने यहां पल रहे अलगाववादियों के खिलाफ ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे भारत को भरोसा हो सके कि उसकी मांग पर कैनेडा सरकार गंभीर है।
सवाल यह है कि ट्रूडो ऐसा क्यों कर रहे हैं? एक हत्या को लेकर जिसका कोई एविडेंस नहीं है, ट्रूडो भारत के साथ संबंधों को दांव पर लगा रहे हैं। कैनेडा की घरेलू राजनीति में झांकें तो इसका कारण नजर आता है। कैनेडा में सिख समुदाय के आठ लाख से अधिक लोग रहते हैं। यह कैनेडा की कुल आबादी का २.१ प्रतिशत है। ऐसे में कैनेडा की कोई भी पार्टी सिख डायस्पोरा को नाराज नहीं करना चाहती। इसमें ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी दो कदम आगे ही हैं। उन्होंने अपनी कैबिनेट में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर सिख समुदाय से जुड़े लोगों को नियुक्त किया है। महंगाई, बेरोजगारी और संसाधनों की उपलब्धता में कमी के कारण कैनेडा में ट्रूडो की लोकप्रियता लगातार कम हो रही है।
जुलाई, २०२२ के एक सर्वे में ज्यादातर कैनेडियन ने कहा था कि वह पिछले ५५ साल के सबसे खराब प्रधानमंत्री हैं। ऐसे में अलगाववादियों को लेकर ट्रूडो की नरम नीति अब उन्हें पूरी तरह से खुले आम समर्थन देने में तब्दील हो गई है। दूसरा ट्रूडो की सरकार इस समय बैसाखी के सहारे पर है। वे न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। किसी से छुपा नहीं है कि इस पार्टी के नेता जगमीत सिंह खालिस्तान समर्थक रैलियों में हिस्सा लेते रहे हैं। साफ है कि ट्रूडो ने सिख वोट बैंक के तुष्टिकरण के लिए भारत के खिलाफ विष वमन किया है। लेकिन ट्रूडो शायद नहीं जानते कि घरेलू राजनीति के लिहाज से विदेश नीति नहीं चलती है। कैनेडा में करीब १३ लाख भारतवंशी रहते हैं। दोनों देशों के बीच करीब ८ अरब डॉलर का कारोबार है। भारत कैनेडा का दसवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। हाल में कैनेडा ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के लिए जो रणनीति जारी की है, उसमें भारत को अहम साझेदार माना है। दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में भी बढ़ रहे हैं। अब भारत ने भी जिस तरह से सख्त कदम उठाते हुए वीजा प्रक्रिया रोक कर कैनेडियन लोगों को आइसोलेट किया है, उसे देखते हुए भारत और कैनेडा, दोनों के लिए इस मसले का हल आसान नहीं है।

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