भारतीय मीडिया में पश्चिमी देशों के पाखंड और दोहरी नीति की तीखी आलोचना की जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ ही ब्रिटेन और कैनेडा की एजेंसियों के काले-कारनामों की बखिया उधेड़ी जा रही है। इन एजेंसियों को खालिस्तानी आंदोलन, तमिल टाइगर के खूनी संघर्ष और पूर्वोत्तर भारत में पृथकतावादी आंदोलनों से जोड़ा जा रहा है। एक प्रमुख समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष खुफिया अधिकारी (अजित डोभाल?) ने सीआईए प्रमुख को आतंकवादी पैरोकार गुरपतवंत सिंह पन्नू को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। यह भी संदेह व्यक्त किया गया कि पन्नू सीआईए का एजेंट हो सकता है।
इस पूरे विवाद में अमेरिका के सामने धर्मसंकट की स्थिति है। उसके वास्तविक चेहरे और चरित्र का पर्दाफाश हो सकता है। फिलहाल, पश्चिमी देशों में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि भारत और कैनेडा में से यदि एक का चुनाव करना हो तो अमेरिका किसका पक्ष लेगा। दुनिया में पांच देशों (फाइव आइज) का एक मजबूत लेकिन अघोषित गठबंधन है। ये देश हैं-अमेरिका, कैनेडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। इन देशों को ‘व्हाइट एंग्लो सेक्सन प्रोटेस्टेंट’ (वास्प देश) माना जाता है। यह रक्त संबंधी भाईचारा है, जिसे आलोचक नस्लवादी गठबंधन करार देते हैं। इन देशों के रणनीतिक और सुरक्षा हित एक जैसे हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ट्रूडो के आरोप कितने भी हास्यास्पद क्यों न हों, अमेरिका कैनेडा का ही साथ देगा। हालांकि समीक्षकों का एक छोटा वर्ग मानता है कि चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत की आवश्यकता है। वह भारत की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा। इन हालात में संभावना यही है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप की कोशिश करेगा।
