राफ़िया राना
इसको लेकर बड़ा कंफ्यूजन है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जो महिला आरक्षण बिल पास करा कर कानून बना रही है वह कब से लागू होगा? यह सबको पता चल गया है कि २०२४ के लोकसभा चुनाव में यह नहीं लागू होने जा रहा है। लेकिन यह २०२९ के लोकसभा चुनाव से लागू होगा या उसके बाद भी पांच साल यानी २०३४ तक इंतजार करना होगा, इसे लेकर कंफ्यूजन है। यह कंफ्यूजन सरकार विरोधी कुछ यूट्यूबर्स ने फैलाया और उसे कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सप्पल ने और बढ़ा दिया। सप्पल ने ट्विटर यानी एक्स पर एक पोस्ट में दावा किया कि यह बिल २०२९ में भी लागू नहीं हो पाएगा। उन्होंने २००२ के परिसीमन और उसके बाद उस पर रोक लगाने वाले संविधान संशोधन कानून के आधार पर यह दावा किया कि महिला आरक्षण के लिए अभी और इंतजार करना होगा हैरानी की बात है कि लोकसभा में अमित शाह द्वारा स्थिति स्पष्ट करने के बावजूद कंफ्यूजन बना हुआ है।
अमित शाह ने बहुत साफ शब्दों में कहा कि २०२४ के लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद जनगणना और परिसीमन का काम होगा। इसके बाद संशय खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन फिर भी राजनीतिक कारणों से विवाद चल रहा है। असल में २००२ में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की ओर से किए गए संशोधन में यह प्रावधान किया गया था कि २०२६ से पहले लोकसभा सीटों का परिसीमन नहीं होगा। उसमें यह भी कहा गया था कि २०२६ के बाद परिसीमन की छूट होगी लेकिन वह उसके बाद होने वाली जनगणना के आंकड़ों पर होगी।
उस कानून के मुताबिक २०२६ में परिसीमन का रास्ता तो साफ हो जाएगा लेकिन वह २०३१ की जनगणना के आंकड़ों पर ही होगा। इसी को आधार बना कर दावा किया जा रहा है कि उस जनगणना के आंकड़े २०३२-३३ में आएंगे और उसके बाद परिसीमन होगा इसलिए महिल आरक्षण २०३४ या २०३९ में लागू होगा। लेकिन ऐसा दावा करने वाले यह भूल जा रहे हैं कि जनगणना का चक्र अब बदल गया है। २०२१ में जनगणना नहीं हुई है और वह जनगणना २०२४-२५ में होगी इसलिए २०२६ के बाद परिसीमन के लिए २०३१ की जनगणना का इंतजार नहीं करना होगा। दूसरे, अगर इसके रास्ते में कोई कानूनी बाधा आती है तो सरकार जब चाहे तब संशोधन करके समय सीमा बदल सकती है, जैसे वाजपेयी सरकार ने बदला था।