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भारत और सऊदी अरब में बढ़ती नजदीकियां

सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान की भारत यात्रा से यह साफ हुआ है कि आर्थिक संबंध के क्षेत्र में विभिन्न देशों की बदलती प्राथमिकताओं के बीच भारत को अपने देश के लिए वे एक महत्त्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं। सऊदी अरब उन देशों में है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार बड़े मुनाफे की स्थिति में रहते हैं। जाहिर है, इसका कारण सऊदी अरब की तेल संपदा है। प्रिंस सलमान की खूबी यह है कि हाथ में सत्ता आने के बाद से उन्होंने दूरदर्शी नजरिया अपना रखा है। वे जानते हैं कि जीवाश्म ऊर्जा की बदौलत उनका देश हमेशा समृद्ध नहीं बना रहेगा। इसलिए वे निवेश के विभिन्न क्षेत्रों को तलाश रहे हैं। उनकी भारत यात्रा भी इसी तलाश का हिस्सा है। जी-२० शिखर सम्मेलन के दौरान पत्रकारों से बातचीत में सलमान कहा कि पांच साल के अंदर पश्चिम एशिया ‘अगला यूरोप’ हो जाएगा। जाहिर है, इसमें आधुनिक तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
इस लिहाज से भारत के तकनीक-कर्मी सऊदी अरब के लिए बड़े फायदे का पहलू हो सकते हैं। इसके अलावा इस समय दुनिया में ट्रेंड अमेरिका के बॉन्ड और ट्रेजरी बिल से पैसा निकालने का है। सऊदी अरब ने गुजरे आठ महीनों में अमेरिका में अपना निवेश ४१ प्रतिशत घटाया है। तो अब उसके सामने सवाल यह है कि अपना पैसा कहां लगाए। चीन उसका एक मुकाम है। साथ ही वह दूसरे स्थलों की तलाश में है। भारत में १०० बिलियन डॉलर निवेश करने के उसके एलान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। असल में कितना निवेश आएगा, यह भारत की अपनी परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इन १०० में ५० बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा सऊदी अरब ने २०१९ में की थी। यह महाराष्ट्र में रिफाइनरी बनाने में होनी है। मगर चार साल से बात सिर्फ इरादों तक है। सऊदी अरब से भारत का सालाना कारोबार पिछले वित्त वर्ष में २९.२८ बिलियन डॉलर का था। इसमें २२.६५ डॉलर का भारत ने आयात किया था। यानी सऊदी अरब को भारी मुनाफा है। ऐसे में अगर वह निवेश करता है, तो यह भारत के फायदे में होगा। अब यह भारत पर है कि वह कितना फायदा उठा पाता है।

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