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आगे बढ़ते भारतीय अमेरिकी संबंध

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई मुलाकात ने इस बात की पुष्टि की कि भारत और अमेरिका में आपसी हितों का मेल पुख्ता शक्ल ले चुका है। जी-२० शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए बाइडेन और मोदी ने जून में वॉशिंगटन में दोनों के बीच हुए समझौतों के अमल पर प्रगति की समीक्षा की। सिर्फ ढाई महीनों के अंदर उन समझौतों पर अमल किस तेजी से आगे बढ़ा है, वह सचमुच ध्यान खींचने वाला है। ड्रोन सौदे से लेकर अमेरिकी नौसेना के जहाजों को भारतीय बंदरगाहों पर मरम्मत की सेवा देने के लिए हुए समझौते अमली जामा पहन चुके हैं। इस रूप में कहा जा सकता है कि भारत अब अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है। यह खबर भी गौरतलब है कि अमेरिका के भारत से यह पूछने के बाद कि ताइवान पर चीनी हमला होने पर वह उस युद्ध में कैसी भूमिका निभाएगा, भारतीय सेना ने अपनी संभावित भूमिका की पड़ताल के लिए एक समिति का गठन किया है।
जब भारत ने भू-राजनीतिक मामलों ने यह भूमिका अपनाई है, तो इस बात को समझा जा सकता है कि बाइडेन प्रशासन क्यों भारत- खासकर प्रधानमंत्री मोदी को खुश रखने के लिए उतावला है। उतावलापन इस हद तक है कि अपने राष्ट्रपति की विदेशी नेताओं से होने वाली वार्ता के बाद प्रश्न पूछने की अमेरिकी पत्रकारों की परंपरा को ताक पर रखने के लिए उसने तमाम तर्क ढूंढे। उधर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने पत्रकारों से कहा कि वे यहां किसी देश में नागरिक स्वतंत्रता की स्थिति का स्कोर कार्ड दिखाने नहीं आए हैं। निहितार्थ यह कि अपने भू-राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने की जुगत में अमेरिका ने खुद ही यह जग-जाहिर कर दिया है कि लोकतंत्र एवं मानव अधिकार जैसे मुद्दे उसके लिए रणनीतिक हथियार हैं, यह कोई निष्ठा की बात नहीं है। उधर अमेरिका की मौजूदा जरूरत को मोदी ने बेहतर ढंग से भांप रखा है और घरेलू राजनीति में अपना हित साधने के लिए उसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं।

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