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श्री कृष्ण : सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ कूटनीतिज्ञ

संकलन – नवकांत ठाकुर

समस्त यादव छत्रपों में हाहाकार मचा था, कारण था प्रसेनजित की मृत्यु। प्रसेनजित कि मृत्यु के साथ ही सत्राजित द्वारा सूर्य की तपस्या कर वरदान में प्राप्त हुई स्यमन्तक मणि भी गायब हो गई, जिसे सत्राजित ने अपने भाई प्रसेनजित को दे दिया था।

अपने छलिया स्वभाव के कारण समस्त यादव नायकों में अलग दिखने वाले श्रीकृष्ण पर इस बार दाऊ को भी शक था। विकट स्थिति थी, जिस कृष्ण को यादव संघ को एकत्रित करने का श्रेय जाता था, उसी की वजह से आज यादव संघ में दरार पड़ने की संभावना थी।

प्रसेनजित कुशल शिकारी था और रोमाचंक व नए रास्ते खोजना उसका शौक था। कृष्ण ने अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता लगा लिया कि प्रसेनजित दक्षिण के अश्मक गणराज्य की तरफ निकला था। कृष्ण उत्तर से दक्षिण की यात्रा को चल दिये।

अश्मक गणराज्य भगवान राम के सहयोगी जाम्बवन्त की प्रजाति का राज्य था। कृष्ण ने जांच की तो पाया प्रसेनजित शेर का शिकार करने गया था पर चूक गया और स्वयं शेर का शिकार बन गया। उस समय उसकी कमर में स्यमन्तक मणि भी बंधी हुई थी। जाम्बवन्त के लोगो ने जब मरे हुए प्रसेनजित के पास वो मणि देखी तो उन्होने इसे जाम्बवन्त को दे दिया।

श्रीकृष्ण के लिए ये आवश्यक था कि वे इस मणि को लेकर वापस लौटे , अन्यथा यादव संघ बिखर जाएगा। पर जाम्बवन्त इतनी आसानी से मानने वाले कहाँ थे। घनघोर युद्ध हुआ, अंततः जाम्बवन्त की हार हुई। जाम्बवन्त को श्रीकृष्ण में राम दिखे, वे हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए, पर उनके पीछे खड़ी उनकी पुत्री जाम्बवन्ती भी कृष्ण पर मोहित हो रही थी। जाम्बवन्त से यह बात छिपी न रही, उन्होंने कृष्ण से विवाह का प्रस्ताव रखा। कृष्ण जानते थे उत्तर से दक्षिण के मध्य ये विवाह सेतु का कार्य करेगा, मणि के साथ जाम्बवन्ती को लेकर कृष्ण लौटे।

जब हत्यारोपी कृष्ण से वापस नायक बनकर कृष्ण लौटे तो सत्राजित लज्जित हो गया और क्षमा याचना के साथ अपनी पुत्री सत्यभामा से कृष्ण के विवाह का प्रस्ताव रखा। यह विवाह यादवों के लिए एकता बढाने में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुआ। सत्राजित और अन्य यदु नायक जो दो खेमे में बंटे थे इस घटना के बाद श्री कृष्ण की शरण मे आ गए।

नीति के सबसे बड़े नायक श्री कृष्ण थे, उन्होंने सूर्यपुत्री कालिंदी, मद्रदेश की लक्ष्मणा, अवंतिका की मित्रवन्दा, गय देश की रोहिणी, कैकय की भद्रा से विवाह कर अनेक राजनैतिक धाराओं को जोड़ दिया था। यहां तक कि जब वे युद्ध मे सत्यभामा को साथ ले गए और दैत्यराज नरकासुर का वध किया तो कैद में फंसी १६,००० कन्याओं को यह जानते हुए की समाज उन्हें नही अपनाएगा, अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया।

परन्तु श्रीकृष्ण ने प्राग्ज्योतिषपुर का शासन स्वयं नही संभाला अपितु नरकासुर के पुत्र भगदत्त को वहां का राजा बनाया और उस जगह से शत्रुता को सदा के लिए समाप्त कर दिया। इतने बड़े भारतवर्ष ने जिसे अपना नायक माना उसने सत्ता की धुरी द्वारिका को नही बनाया बल्कि हस्तिनापुर को बनाया महाराज युधिष्ठिर को बनाया क्यों?

क्योंकि श्री कृष्ण जानते थे उनकी नारायणी सेना, यादव छत्रप मद में चूर होकर अपनी शक्ति का क्षरण कर देंगे लेकिन यदि उनको यह भान रहे कि शासक कोई और है तो वे एकता में बंधे एक साथ खड़े रहेंगे।
इस भारतवर्ष में श्रीकृष्ण सा नायक न तो हुआ है न होगा! श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

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