73 Views

बदलते वैश्विक परिदृश्य में दम तोड़ता मुस्लिम ब्रदरहुड

एक वक्त इस्लामी दुनिया में मुस्लिम ब्रदरहुड तेजी से फैलता आंदोलन था। कट्टर इस्लामवादी और तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन भी मुस्लिम ब्रदरहुड के हिमायती थे। ध्यान रहे सन् २०११ में विरोध प्रदर्शनों से हटे हुस्नी मुबारक के बाद ब्रदरहुड ने ही मिस्र में इस्लामी परचम के झंडे गाढ़े थे। इस आंदोलन को अर्दोआन का समर्थन इतना जबरदस्त था कि उन्होंने सुरक्षा बलों की सैनिक क्रांति से बने राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल सीसी की जम कर आलोचना की। उन्हें तानाशाह तक कहा। उन्होंने मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोरसी के समर्थन में रैलियां कीं, मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं का हर तरह के संसाधन और सुविधाएं मुहैया करवाईं और अपने देश में शरण दी।
सचमुच पूरे अरब क्षेत्र में, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र ने इस इस्लामिक समूह को अपने लिए खतरा, चुनौती माना था वहीं अर्दोआन ने मिस्र में २०११ और २०१२ में हुए चुनावों में मुस्लिम ब्रदरहुड की जीत के सहारे सऊदी अरब की जगह स्वयं को सुन्नी इस्लामिक देशों का नेता बनने का सपना संजोया। लेकिन यह रणनीति मिस्र में सीसी के सत्ता पर काबिज होने और इसके दो साल बाद सीरिया में असद के समर्थन में रूस द्वारा किए गए हस्तक्षेप के बाद धरी रह गई।
अब हालात यह है कि मौजूदा वक्त को ‘नए दौर’ की संज्ञा देते हुए अर्दोआन अब सऊदी अरब, मिस्र और यूएई से हाथ मिलाए हुए है। मुस्लिम ब्रदरहुड की गतिविधियों से दूरी बनाते लगते है। तुर्की ने ब्रदरहुड के सदस्यों या उससे जुड़े व्यक्तियों को वहां रहने की अनुमति के नवीनीकरण से भी इंकार किया है। ब्रदरहुड के सदस्योंको वहां से चले जाने के लिए कहा। ऐसी खबरें भी है कि उसके कुछ नेताओं को गिरफ्तार किया है। और मिस्र के राष्ट्रपति द्वारा जिन अन्य लोगों को मिस्र को सौंपे जाने की मांग की जा रही है, उन्हें किसी तीसरे देश में भेजने पर विचार है।

Scroll to Top