दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अपनी उदारता के लिए मशहूर यूरोप में एक के बाद एक देश में धुर दक्षिणपंथी ताकतों का राजनीति में प्रभाव क्यों बढ़ता जा रहा है, यह सारी दुनिया के लिए गंभीर विचार मंथन का प्रश्न है। बाकी दुनिया के लिए यह सवाल इसलिए अहम है, क्योंकि अगर यूरोप में ऐसा हो सकता है, तो फिर जिन समाजों में लोकतंत्र और उदारवाद की मजबूत परंपरा नहीं रही है, वहां इसका ख़तरा अधिक मजबूत माना जाएगा।
इटली में नव-फासीवादी पार्टी की नेता ग्रियोगिया मेलोनी इस समय वहां की प्रधानमंत्री हैं। ब्रिटेन की कभी परंपरावादी रही कंजरवेटिव पार्टी अब खुद धुर दक्षिणपंथी एजेंडे पर सियासत कर रही है। फ्रांस में मेरी ला पेन की नेशनल रैली पार्टी पिछले दो चुनावों से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती रही है। स्पेन में जुलाई में हुए चुनाव में धुर दक्षिणपंथी वॉक्स पार्टी इस हाल में पहुंच गई कि परंपरावादी पीपुल्स पार्टी को अगर सरकार बनानी है, तो उसकी मदद लेनी होगी।
एक समय था, जब वॉक्स पार्टी जैसी ताकतें वह अछूत समझी जाती थीं। और अब यह संक्रमण जर्मनी तक पहुंच चुका है। वहां नव-नाजीवादी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर ड्यूशलैंड इस समय जनमत सर्वेक्षणों में सत्ताधारी एसपीडी पार्टी के बाद दूसरे नंबर पर चल रही है। चुनावी जीत के बाद कुछ जिलों के प्रशासन उसके हाथ में आ चुके हैं। अब यह पार्टी यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। इसके मद्देनजर पार्टी की सालाना बैठक इस हफ्ते हुई, जिसमें यह तय किया गया कि यूरोपीय संसद में समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ साझेदारी की जाएगी। यानी धुर दक्षिणपंथी पार्टियां अपना मोर्चा बनाने की तैयारी में हैं। इसीलिए यह सवाल अहम हो गया है कि आखिर इन पार्टियों को इतना जन समर्थन क्यों मिल रहा है?
इस सिलसिले में जानकारों की इस राय से सहमत हुआ जा सकता है कि जब परंपरावादी वाम और दक्षिणपंथी पार्टियां लोगों की उम्मीदों को पूरा करने में नाकाम होती चली जा रही हैं, वैसे में जिन दलों के पास नस्लीय पहचान और नफरत का एजेंडा है, लोग उनकी शरण में जा रहे हैं। स्पष्टत: यह यूरोप के लिए गंभीर आत्म-चिंतन का समय है।
