जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने विस्फोटक खुलासे किए हैं। इससे अत्यंत गंभीर प्रश्न उठे हैं। अपेक्षित यह है कि मलिक ने जो कहा है, उन पर सरकार बिंदुवार जवाब दे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी का आरोपों को नजरअंदाज कर मुद्दों को भटका देने का तरीका संभवत: इस मामले में कारगर नहीं होगा। ठीक उसी तरह जैसे अडानी घोटाले में राहुल गांधी ने जो सवाल उठाए हैं, वे ऐसे तरीकों से गायब नहीं हुए हैं। बल्कि मलिक की इस टिप्पणी से कि ‘प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार से कोई ज्यादा नफरत नहीं है’ अडानी से सरकार की मिलीभगत के इल्जाम अब और गंभीर दिखने लगे हैं। बहरहाल, मलिक ने सबसे ज्यादा विस्फोटक बातें फरवरी २०१९ में हुए पुलवामा कांड के बारे में की हैं। चूंकि मलिक उस समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, इसलिए उनकी बातों को कोई भी हलके से नहीं ले सकता।
उनका दावा है कि यह भयानक घटना भारतीय सुरक्षा और खुफिया व्यवस्थाओं की नाकामी और सीआरपीएफ की उसके जवानों को हवाई जहाज उपलब्ध कराने की गुजारिश सरकार द्वारा ठुकरा दिए जाने के कारण हुई। जब इस पहलू की चर्चा मलिक ने प्रधानमंत्री से की, तो न सिर्फ मोदी ने, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने भी उनसे चुप रहने को कहा।
अगर सरकार की तरफ से इन बातों का तथ्यपरक खंडन नहीं किया जाता है, तो लोगों के मन में कई अन्य तरह के संदेह भी घर बना लेंगे। इसके अलावा मलिक के इस दावे का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ भी है। स्पष्ट है कि उपयुक्त खंडन के अभाव में पाकिस्तान जैसे भारत विरोधी देश इसे अपने लिए क्लीन चिट के रूप में पेश करेंगे। पुलवामा से लेकर भ्रष्टाचार और राष्ट्रपति से मुलाकातियों की सूची पीएमओ से क्लीयर होने जैसे मुद्दों तक पर सत्यपाल मलिक ने जो कहा है, उससे सीधे प्रधानमंत्री की छवि चोटिल हुई है। मलिक ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री कम जानकारी वाले व्यक्ति हैं, जो खुद में मशगूल रहते हैं। यह भी प्रधानमंत्री की आम छवि के विपरीत बात है। बेहतर होगा कि सत्ता पक्ष अपने आईटी सेल के जरिए मलिक पर हमला करने के बजाय इन प्रश्नों के दो-टूक जवाब देश के सामने रखे।



