खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह का मामला आरंभ से रहस्यमय है। पिछले तीन दिन में जो हुआ है, उससे इस रहस्य में और वृद्धि ही हुई है। यह सवाल अहम है कि अमृतपाल सिंह जब रात भर अपने घर पर था, तभी उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर लिया गया? इसके बदले उसे अपने काफिले के साथ निकलने दिया गया और फिर पुलिस ने पीछा कर पकडऩे का नजारा पैदा करने की कोशिश की। इसी बीच वह अपनी कार और काफिले से गायब हो गया, क्या इसे रहस्यमय नहीं कहा जाएगा? वैसे ऐसे सवाल तो उसके दुबई से भारत आकर देखते-देखते एक प्रभावशाली शख्सियत के रूप में उभर जाने के पूरे घटनाक्रम पर रहे हैँ। उसके प्रभाव का असर यह है कि उसके समर्थकों ने लंदन में भारतीय उच्चायोग पर से भारत का झंडा उतार दिया। इसके पहले ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में भारत के मानद वाणिज्य दूतावास पर वे हंगामा कर चुके थे। तो इस तरह अपने वारिस पंजाब दे संगठन का प्रमुख बताने वाला अमृतपाल सिख चरमपंथ का एक बड़ा चेहरा बनता जा रहा है।
अब आशंका है कि अगर उसे गिरफ्तार करने में पंजाब पुलिस नाकाम रही या गिरफ्तार के बाद किसी कानूनी खामी का लाभ उठा कर वह रिहा होने में सफल रहा, तो उसको लेकर रहस्य और फैलेगा। इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि पंजाब सरकार ऐसे माहौल में अंतर्निहित खतरों से वाकिफ है। जिन खतरों के पीछे सांप्रदायिक और भावनात्मक पृष्ठभूमि हो, बेहतर यह होता है कि उनके उभरने की संभावना को ना पनपने दिया जाए। जबकि अमृतपाल तो अब पनप चुका है। बहरहाल, अभी वह ऐसी ताकत है, जिस पर काबू पाया जा सकता है। जबकि कुछ समय तक अगर उससे जुड़े रहस्य को यूं ही आगे बढऩे दिया गया, तो फिर चुनौती बहुत बड़ी हो जाएगी। आखिर यह सारी कहानी उस राज्य में घट रही है, जहां चार दशक पहले इसी तरह एक खतरे को पनपने, बढऩे और एक बड़ी चुनौती बन जाने दिया गया था। उस दर्दनाक घटनाक्रम से क्या कोई सबक नहीं सीखा गया? फिलहाल, तो इस बारे में भरोसा करने का कोई मजबूत आधार नजर नहीं आता।
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