पाकिस्तान बदहाल है। डिफॉल्टर होने से वह कब तक बच पाएगा, यह कहना लगातार कठिन बना हुआ है। लेकिन अभी जिस समस्या का वह सामना कर रहा है, वह फौरी है। उसकी लगातार चली आ रही समस्या की जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। इस समस्या पर हाल में आई एक किताब ने रोशनी डाली है। जिन कारणों का उसमें जिक्र किया गया है, उससे दूसरे समाज भी सबक ले सकते हैं।
पाकिस्तान की असल मुश्किल यह है कि वहां देश पर इलीट परिवारों के एक छोटे से समूह ने शिकंजा कस रखा है। इस तबके ने बीते ७५ वर्षों से देश को अपनी मुट्ठी में बनाए रखा है। ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ता डॉ. रोसिटा एर्मिटेज ने इसी विषय पर अपनी पीएचडी थीसिस लिखी, जो कुछ समय पहले किताब की शक्ल में सामने आई। डॉ. एर्मिटेज अपने इस शोध के लिए १४ महीनों तक पाकिस्तान में रहीं। इसके बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि व्यापारियों, राजनेताओं, नौकरशाहों और सैन्य अधिकारियों का एक छोटा-सा समूह देश पर राज कर रहा है।
यही लोग देश की दिशा तय करते हैं, कानून बनाते हैं और उनसे फायदा उठाते हैं। ‘बिग कैपिटल इन ऐन इनइक्वल वर्ल्ड’ नाम की इस कि बात में यह विवरण दिया गया है कि १९६५ और १९७१ के युद्धों में भारत के हाथों हार और अन्य उथल-पुथल के बावजूद कैसे यह तबका देश पर अपना नियंत्रण बनाए रखने में सफल रहा। इस समूह पर कानून लागू नहीं होते। दरअसल, जो कानून यह तबका बनाता है, खुद वह उसका पालन नहीं करता। देश के अहम क्षेत्रों पर उनका जितना नियंत्रण कसता है, वे उतने ही धनी और अधिक प्रभावशाली होते जाते हैं। जाहिर है, उसी अनुपात में आम जन वंचित होता चला गया है। मध्य वर्ग के लोगों का भी उच्च वर्ग में प्रवेश वंचित बना हुआ है। किसी समाज के लिए यह पिछड़ेपन का समग्र नुस्खा है। ऐसी स्थितियां समाज में निराशा और असंतोष भी पैदा करती हैं। पाकिस्तान में इनके संकेत आम तौर पर देखे जा सकते हैं। सबक यह है कि सोशल मॉबिलिटी की अनदेखी कोई समाज अपने लिए दीर्घकालिक संकटको आमंत्रित करने का जोखिम उठाते हुए ही करता है।



