लखनऊ। यूपी के 2017 में हुए विधानसभा चुनाव की वह तस्वीर भूलती नहीं, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और एसपी प्रमुख अखिलेश यादव एक बस पर सवार होकर रोड शो कर रहे थे। दोनों नेता एक-दूसरे का हाथ थामे हुए थे और साथ में चल रहे कांग्रेस-एसपी के कार्यकर्ता ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ का नारा लगा रहे थे। लेकिन दो साल में तस्वीर बदल गई। नई तस्वीर में अखिलेश यादव के साथ बीएसपी प्रमुख मायावती हैं। दोनों पार्टियों ने 2019 का आम चुनाव साथ मिलकर लड़ने का ऐलान किया है। इस नई तस्वीर का हिस्सा राहुल गांधी नहीं बन पाए। ऐसे में कांग्रेस ने यूपी की सभी लोकसभा सीटों (80) पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि यूपी में कांग्रेस किस स्थिति में है?
पिछले तीन बड़े चुनावों से (2012 का विधानसभा चुनाव, 2014 का लोकसभा चुनाव और 2017 का विधानसभा चुनावों) कांग्रेस का वोट शेयर लगातार घटता जा रहा है। 7 वर्षों में पार्टी का वोट प्रतिशत करीब आधा रह गया है। 2012 में 11.6 फीसदी वोट पाने वाली पार्टी 2017 में 6.25 फीसदी पर सिमट गई। अगर कांग्रेस का यही प्रदर्शन जारी रहा तो कांग्रेस यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 4 या 5 सीटों पर ही टक्कर देती दिख रही है। कांग्रेस को यूपी चुनावों में तीन बड़ी पार्टियों (बीजेपी, एसपी, बीएसपी) का सामना करना होगा। 2017 में गठबंधन करने पर कांग्रेस को एसपी समर्थकों का साथ मिला। इस स्थिति में भी पार्टी केवल 7 सीटें निकालने में कामयाब हुई। गठबंधन के बावजूद 25 विधानसभा सीटें ऐसे थीं, जहां एसपी और कांग्रेस-दोनों के उम्मीदवार मैदान में थे। इन सीटों पर कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई। दूसरा स्थान भी हासिल नहीं कर सकी। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव गठबंधन में अखिलेश ने दरियादिली दिखाते हुए कांग्रेस को ज्यादा सीटें सौंप दी थीं। अगर 2012 या 2014 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को आधार बनाकर बंटवारा होता तो कांग्रेस को 50 से 60 के बीच में ही सीटें दी जानी चाहिए थीं। लेकिन एसपी ने कांग्रेस को 114 सीटें दीं। लेकिन कांग्रेस 6.25 फीसदी ही वोट हासिल कर पाई। पार्टी केवल 7 सीटें ही जीती।
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