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4 टीमें, 8 घंटे: ग्रेटर नोएडा में ऐसे पकड़ा गया तेंदुआ

ग्रेटर नोएडा। ग्रेटर नोएडा वेस्ट का सादुल्लापुर गांव रविवार दिनभर एक तेंदुए की दहशत के साए में रहा। जंगल से भटक कर गांव पहुंचे तेंदुए ने आइटीबीपी के जवान को घायल भी कर दिया। वह एक खेत से दूसरे खेत और वहां बने फार्म हाउस को अपना ठिकाना बनाता रहा। इस दौरान ग्रामीणों ने उसे एक फार्म हाउस में घेर लिया। करीब 8 घंटे बाद उसे वन विभाग की चार टीमों ने घेराबंदी कर उसे बेहोश किया। दोपहर 3 बजे के बाद उसे पकड़ने के लिए गौतमबुद्ध नगर, दिल्ली, हापुड़ और मेरठ की वन विभाग की टीमों ने एक साथ ऑपरेशन शुरू किया था। इस दौरान भीड़ को संभालने में पुलिस बल को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। आशंका है कि बुधवार रात ग्रेटर नोएडा वेस्ट में भी यही तेंदुआ दिखा था, हालांकि वन विभाग की टीम उसे फिशिंग कैट बता रही है।
ग्रामीणों के अनुसार रविवार सुबह करीब 9 बजे मारीपत रेलवे स्टेशन के निकट सादुल्लापुर निवासी मैनपाल के खेत में सिंचाई हो रही थी। इसी दौरान खेत में तेंदुआ दिखा और वहां से गुजर रहे दो लोगों ने शोर मचाया। शोर सुनकर किसान भाग खड़े हुए। उसके बाद तेंदुआ गांव के अंदर जा पहुंचा। यहां तेंदुए ने रामनिवास के मकान में घुसने की कोशिश की। तेंदुए ने उसकी दीवार पर छलांग लगाई, लेकिन ऊंचाई अधिक होने के कारण वह सफल नहीं हुआ। इसके बाद काली और प्रभात के फार्म में भी तेंदुआ घुस गया। यहां काफी देर रहने के बाद यह खेतों से होते हुए गांव से सटे जयवीर के फार्म में चला गया। घटना के बाद मौके पर बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। सूचना पर बिसरख पुलिस और वन विभाग की टीम भी पहुंच गई। वन विभाग की टीम ने उसके तेंदुए होने की पुष्टि की।
हाइटेक जिला माने जाने वाले गौतम बुद्ध नगर में जंगली जानवरों को पकड़ने के लिए जरूरी संसाधन भी नहीं हैं। इसके लिए दूसरे जिलों पर निर्भर रहना पड़ता है। सादुल्लापुर में तेंदुआ आने के बाद मेरठ, दिल्ली और हापुड़ से जाल और अन्य संसाधन मंगाए गए। इन्हें आने में 4 घंटे से अधिक समय लग गया। इस दौरान तेंदुआ और भीड़ मौके पर जमी रही। वह किसी को नुकसान पहुंचा भी सकता था, लेकिन इसे रोकने की कोई व्यवस्था नहीं थी। वन विभाग के अधिकारियों के पास दूसरे जिलों से आ रहे अधिकारियों की राह देखने और गेट पर बैठकर इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था। जंगली जानवरों को पकड़ने के लिए पिंजड़ा और इंजेक्शन लगाने के संसाधन तक यहां नहीं हैं। रात में देखने के लिए दूरबीन भी नहीं है। बड़ी बात यह है कि सांप पकड़ने तक के लिए माथापच्ची करनी पड़ती है। अगर ये सारे संसाधन विभाग के पास होते तो शाम तक इंतजार करने की जरूरत नहीं होती। हालांकि जिला वन अधिकारी पीके श्रीवास्तव कहते हैं कि सभी जिलों के पास हर संसाधन होना अनिवार्य नहीं है। इस जिले में वन क्षेत्र नहीं है, लिहाजा इनकी जरूरत भी नहीं पड़ती है। पिंजड़ा और ट्रेंक्युलाइजर गन हर जिले के पास नहीं होती है। इन्हें रखने और इस्तेमाल करने की हर जिले और अधिकारी को अनुमति भी नहीं है। नशीला इंजेक्शन लगाने के लिए भी कई तरह की अनुमति की जरूरत पड़ती है। फिर भी इस जिले की संवेदनशीलता को देखते हुए शासन से कई संसाधन मांगे गए हैं। इनमें रात में देखने वाली दूरबीन और स्नेक कैचर भी शामिल हैं।
पिछले दिनों बागपत में भी तेंदुआ दिखा था। उसे पकड़ने के ऑपरेशन के दौरान उसकी मौत हो गई थी। बताया जाता है उसे नशीला इंजेक्शन ओवरडोज हो गया था। उसमें कई अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी। उस घटना को देखते हुए पशु चिकित्सकों से पूरी तरह आश्वस्त होने और अनुमति लेने के बाद ही इंजेक्शन की कार्रवाई शुरू की गई। जिले में करीब 4 साल पहले भी तेंदुआ दिख चुका है। हालांकि उस समय कोई चोटिल नहीं हुआ था। तब नवंबर 2015 में एनटीपीसी टाउनशिप के आसपास तेंदुआ सीसीटीवी में कैद हुआ था। उस समय उसे पकड़ने के लिए पिंजरे भी लगाए गए थे। हालांकि वह पकड़ा नहीं गया और खुद ही गायब हो गया। उसके बाद अब यह मामला सामने आया है।

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