124 Views

10 साल में बाल विवाह की दर में आई बड़ी कमी

नई दिल्ली। समाज में शिक्षा के प्रसार और आर्थिक स्थिति में सुधार का असर बाल विवाह की संख्या में कमी के तौर पर नजर आ रहा है। कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, झारखंड में इसमें उल्लेखनीय सुधार नजर आ रहा है। उत्तर प्रदेश तो इस लिहाज से चैंपियन स्टेट की तरह उभरकर आया है और 15 से 19 साल की उम्र में सिर्फ 6.4 फीसदी लड़कियों की ही शादी हो रही है। हालांकि, बंगाल में स्थिति चिंताजनक है। कम उम्र में विवाह का बुरा प्रभाव किशोरियों के गर्भवती होने का है। बाल विवाह की दर में ज्यादातर राज्यों में कमी आई है लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां अन्य राज्यों की तुलना में सुधार अपेक्षाकृत कम है। नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के अनुसार, देश में बाल विवाद की औसत दर 11.9% है। हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में आंकड़ों में कुछ वृद्धि जरूर दर्ज की गई है। एनएफएचएस 3 (2005-06) के आंकड़ों से एनएफएचएस-4 (2015-16) के आंकड़ों में उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में काफी सुधार हुआ है। उत्तर प्रदेश में 29 फीसदी से दर कम होकर सिर्फ 6.4 फीसदी ही रह गया है। पश्चिम बंगाल में भी सुधार हुआ है, लेकिन अपेक्षाकृत कम है। बंगाल में 34 फीसदी से यह दर कम होकर 25.6 फीसदी रह गई है।
बाल विवाह का दुष्प्रभाव कम उम्र में गर्भधारण के रूप में है। 15 से 19 की उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में हर तीन में से एक लड़की टीन-ऐज में ही मां बन जा रही है। इस उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में से एक चौथाई 17 साल की उम्र तक मां बन जाती हैं और 31% 18 की उम्र तक मां बन जाती हैं। टीन-ऐज प्रेगनेंसी में गोवा पहले नंबर पर है, मिजोरम दूसरे और मेघालय तीसरे नंबर पर है। बाल विवाह को लेकर शहरों की स्थिति गांवों से बेहतर है और इसी तरह आर्थिक आधार भी बाल विवाह रोकने के लिहाज से अहम फैक्टर है। शहरों में बाल विवाह का औसत 6.9 फीसदी और गांवों में 14.1 फीसदी है। कुछ राज्य ऐसे हैं जहां शहरों में बाल विवाह के आंकड़े आपको चौंका सकते हैं। शहरी क्षेत्र में बाल विवाह में पहला नंबर हरियाणा का है और दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है। तीसरे नंबर पर मणिपुर है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top