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हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव का मुद्दा राज्यसभा में उठा

नई दिल्ली। राज्य सभा में संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव का मामला उठा। बीजेपी के उत्तर प्रदेश से सांसद हेमंत यादव ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है। उन्होंने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे 370 अधिकारियों में से मात्र 8 अधिकारी हिंदी मीडियम से आए हैं। उन्होंने बताया कि साल 2013 में हिंदी मीडियम से यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या 17 फीसदी थी जो घटते-घटते साल 2018 में 2.01 फीसदी पर आ गई है। उन्होंने बताया कि 2015 में 4.28 फीसदी, 2016 में 3.45 फीसदी, 2017 में 4.36 फीसदी था।
उन्होंने कहा कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की संख्या में हो रही गिरावट गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने हिंदी मीडियम के अभ्यर्थियों के साथ होने वाली भेदभाव की ओर सदन का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि यूपीएससी की मुख्य परीक्षा की कॉपी चेक करने पर भी आरोप लग रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुख्य परीक्षा की कॉपी अंग्रेजी भाषा के लोग चेक करते हैं जो हिंदी में सहज नहीं होते। इसका काफी फर्क पड़ता है। वे हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ भेदभाव करते हैं। उन्होंने कहा कि इंटरव्यू के दौरान हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ अपमानजनक व्यवहार की शिकायतें मिल रही हैं। उन्होंने यूपीएससी के हिंदी के पेपर को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि इंग्लिश के पेपर का हिंदी में अनुवाद गूगल ट्रांसलेट की मदद से किया जाता है। मशीनी अनुवाद होने के कारण सवाल का सिर्फ पूरा ढांचा ही बदलता बल्कि कई बार सवाल में काफी गलती होती है। ऐसे में किसी मेधावी छात्र के लिए भी उन सवालों का जवाब देना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब सवाल ही गलत होंगे तो जवाब सही कैसे हो सकता है।

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