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सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से पूछा, डायरेक्टर पर चयन समिति से क्यों नहीं ली मंजूरी

नई दिल्ली। 6 दिसंबर 1992 का दिन भारतीय राजनीति को हमेशा से बदल देनेवाले दिन के रूप में देखा जाता है। इसी दिन लाखों कारसेवकों ने मिलकर बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया था। 1992 में अयोध्या में जो हुआ, उसकी नींव 1990 में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के साथ ही पड़ गई थी। उस वक्त ‘कसम राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा काफी चला था। इसके बाद धीरे-धीरे मुद्दे ने रंग पकड़ा और 1992 में ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’ के साथ मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया। 6 दिसंबर को आखिर 26 साल पहले क्या हुआ था, यहां हम आपको बता रहे हैं।
सुबह करीब 10.30 बजे की बात है। सीनियर बीजेपी और वीएचपी नेताओं ने विवादित ढांचे के पास पहुंचकर पूजा-अर्चना की थी। इसमें एल के आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के साथ कई संत भी शामिल थे। इनके पीछे थे करीब 1.5 लाख कारसेवक। माहौल को ध्यान में रखते हुए इस बात की जानकारी पुलिस को दी गई। करीब 11.45 पर डीएम और एसएसपी फैजाबाद राम जन्मभूमि के आसपास के इलाके का राउंड लगाने आए और स्थिति का निरीक्षण किया।
उस वक्त तक अयोध्या छावनी बन चुकी थी। बताया जाता है कि किसी भी प्रकार की अनहोनी को रोकने के लिए 2,300 से ज्यादा पुलिसवाले तैनात किए गए थे। लेकिन 12 बजे के आसापास कुछ युवा कारसेवक किसी तरह बाबरी मस्जिद के गुंबद तक पहुंच गए। उनका यहां पहुंचना बाकी कारसेवकों को इशारा था कि सुरक्षा घेरा तोड़ा जा चुका है। इसके बाद बाकी कारसेवक भी सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए मस्जिद की तरफ बढ़ गए। इसके बाद 12.45 पर कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया। इसके लिए उन्होंने साथ लाए गए कुदाल, हथौड़ों, रॉड्स, खुदाई के लिए इस्तेमाल होनेवाली चीजों की मदद ली थी। इसके बाद जो हुआ वह और भी भयानक था। बाबरी मस्जिद के गिरने की खबर आग की तरह फैल गई। इससे अयोध्या में सामुदायिक माहौल बिगड़ गया। कई जगहों पर दंगों की भी खबर आई। इसे देखते हुए यूपी में राष्ट्रपति शासन तक लगाना पड़ा था। तब से अबतक मंदिर-मस्जिद का मुद्दा शांत नहीं हुआ है। फिलहाल विवादित स्थल के जमीन बंटवारे का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है।

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