116 Views

सही नहीं है हर बात का राजनीतिकरण

भारतीय नौ सेना में दूसरे विमानवाहक जंगी जहाज- विक्रांत का शामिल होना निश्चित रूप से एक ऐसा मौका है, जिससे हर भारतीय पहले की तुलना में अधिक आश्वस्त रहेगा। अफसोसनाक यह है कि आज के ध्रुवीकृत भारत में चाहे उपलब्धि हो या विफलता- किसी बात पर भी साझा सुख या दुख का माहौल नहीं बनता। हर मौके पर दो कथानक उभर आते हैं। विक्रांत के नौसेना में शामिल होने का मौका भी इसका अपवाद नहीं रहा। इन स्थितियों के लिए बेशक एक बड़ी वजह वर्तमान सरकार की यह सोच है कि भारत की कथा असल में २०१४ में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत के बाद शुरू होती है। उसके पहले कुछ नहीं था। वरना, प्रधानमंत्री मोदी विक्रांत को “आत्म-निर्भर भारत” की उपलब्धि बताने के बजाय यह बताते कि इसके निर्माण को हरी झंडी पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने दी थी। पूर्व मनमोहन सिंह सरकार के समय इसका जलावतरण हो गया था। अब इसे नौसेना को सौंपा गया है। बहरहाल, इस उपलब्धि की घड़ी में भी इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इस सारी प्रक्रिया में लगभग १८ साल लग गए।
नौसैनिक मामलों में भारत का मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन है। वह इस अवधि में हमसे काफी आगे निकल चुका है। इस हकीकत से वाकिफ होने के लिए इस तथ्य पर ध्यान देना काफी होगा कि चीन के पास कुल ३५५ जहाज हैं, जबकि भारत के पास सिर्फ ४४ हैं। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक चीन के पास तीन विमानवाहक जहाज, ४८ डिस्ट्रॉयर, ४३ फ्रिगेट और ६१ कोर्वेट हैं। भारत के पास १० डिस्ट्रॉयर, १२ फ्रिगेट और २० कोर्वेट हैं। जाहिर है, विक्रांत के भी नौसेना में भर्ती किए जाने के बावजूद भारत अभी चीन से युद्ध के लिए तैयार अवस्था में नहीं है। फिलहाल, विक्रांत के पास अपने लड़ाकू विमान नहीं होंगे। इसलिए भारत के पास अभी मौजूद जंगी जहाज विक्रमादित्य से हटा कर विमानों को उस पर तैनात किया जाएगा। विक्रांत के लिए करीब २४ विमान खरीदे जाने हैं। लेकिन कॉन्ट्रैक्ट अभी तक दिया नहीं गया है। विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि भारत में अलग-अलग निर्णय लेने की प्रक्रिया के कारण विमानों का चयन जहाज की परियोजना से अलग हो गया।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top