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सवाल ताकत और रणनीति का

मीडिया में ऐसी रिपोर्टों की भरमार रही कि भारत सरकार ने श्रीलंका से चीन के कथित तौर पर जासूसी में सक्षम जहाज को कोलंबो के पास हंबनटोटा बंदरगाह पर ना आने देने को कहा है। भारत ने इस जहाज के वहां आने को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताया। भारत की बात का असर भी हुआ। श्रीलंका ने पहले इजाजत देने के बाद भी चीन से कहा कि वह जहाज का हंबनटोटा पहुंचाने का कार्यक्रम टाल दे। लेकिन चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया। समझा जाता है कि इसके बाद चीन ने श्रीलंका को धमकी दी। दिवालिया हो चुका श्रीलंका चीन की धमकियों में आ गया। आखिरकार चीन का सर्वे जहाज युवान वांग-५ मंगलवार को श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंच गया। जाहिर है, इससे भारत के लिए असहज स्थिति बनी है। कूटनीतिक विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत के पास इस बात की रणनीति होनी चाहिए थी कि अगर श्रीलंका ने उसकी बात नहीं मानी, तो वह अगला कदम क्या उठाएगा। एक राय यह भी जताई गई है कि भारत की वर्तमान सरकार देश की वास्तविक शक्ति के आकलन के आधार पर नहीं, बल्कि उस शक्ति के आधार पर कदम उठाती है, जिसे उसने अपनी कल्पनाओं में जगह दे रखी है।
इसका परिणाम अब सामने आया है। श्रीलंका पर चीन का काफी प्रभाव है, ये बात जग-जाहिर है। ये प्रभाव एक दिन में नहीं बना है। श्रीलंका ने २०१७ में ही हंबनटोटा बंदरगाह को ९९ साल की लीज पर चीन को दे दिया था। चीन ने अपनी इसी खास स्थिति का इस्तेमाल किया। खबरों के मुताबिक छह अगस्त को श्रीलंकाई विदेश मंत्रालय ने छह अगस्त को और अधिक राय-मशविरे की जरूरत बताते हुए चीन से जहाज का आगमन टालने का अनुरोध किया, तो चीनी अधिकारी गुस्से से उबल पड़े। इस सिलसिले में हुई बैठकों के दौरान चीन ने श्रीलंका के संभावित परिणामों की चेतावनी दी। चीनी अधिकारियों ने कहा कि श्रीलंका पर मौजूद चीन के कर्ज को लौटाने का कार्यक्रम फिर से तय करने, चार बिलियन डॉलर की सहायता उसे देने, और मुक्त व्यापार समझौते को लेकर चीन के साथ चल रही उसकी बातचीत पर इस मामले का असर पड़ेगा। तब श्रीलंका को झुकना पड़ा। जाहिर है, ये घटनाक्रम एक सबक है। इस बात को लेकर भारत को अधिक सजग होना पड़ेगा तथा भविष्य में किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पहले से ही कारगर नीति बनानी पड़ेगी।

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