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संसदीय बोर्ड में टूटी हैं परंपराएं!

भाजपा संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन के बाद इसका ढांचा पूरी तरह से बदला हुआ है। इसमें शामिल किए गए नए लोगों के नाम चौंकाने वाले हैं लेकिन उससे ज्यादा इसके संरचनात्मक ढांचे को लेकर जो बदलाव हुआ है वह बहुत हैरान है। इस बार संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन में कई नियम टूट गए हैं। हालांकि ये नियम पार्टी के संविधान में दर्ज नहीं हैं लेकिन परपंरा से कई चीजें चली आ रही थीं। इस बार उन परंपराओं को दरकिनार करके सदस्यों को हटाया गया है या उन्हें जगह नहीं दी गई है।
संसदीय बोर्ड के गठन में कुछ परंपराओं का पालन अनिवार्य रूप से होता था। जैसे पार्टी का अध्यक्ष संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष होगा। पार्टी के सारे पूर्व अध्यक्ष संसदीय बोर्ड के सदस्य होंगे। अगर पार्टी सत्ता में है और पार्टी अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री नहीं हैं तो प्रधानमंत्री भी इस बोर्ड के सदस्य होंगे। इसी तरह संसद के दोनों सदनों में पार्टी के नेता संसदीय बोर्ड के सदस्य होंगे। पार्टी का संगठन महामंत्री इस बोर्ड का पदेन सदस्य होगा। और संगठन महामंत्री से अलग एक महासचिव होगा, जो संसदीय बोर्ड का सदस्य सचिव होगा। इस बार इनमें से कई परंपराएं टूट गई हैं।
इससे पहले जो बोर्ड था उसमें राज्यसभा में सदन के तत्कालीन नेता थावरचंद गहलोत सदस्य थे। गहलोत जब राज्यपाल बन गए तो उनकी जगह खाली हो गई। उनकी जगह पीयूष गोयल को राज्यसभा में नेता बनाया गया। पिछले दिनों वे फिर से राज्यसभा में चुन कर आए तो उनको दोबारा नेता बनाया गया। उम्मीद की जा रही थी कि उच्च सदन के नेता के नाते उनको संसदीय बोर्ड में जगह मिलेगी लेकिन उनको नहीं रखा गया। लोकसभा में पार्टी के नेता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। प्रधानमंत्री और नेता सदन के नाते वे संसदीय बोर्ड में हैं। परंतु राज्यसभा का नेता संसदीय बोर्ड में नहीं है।
इसी तरह पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों के बोर्ड का सदस्य होने की परंपरा रही है। इसी परंपरा की वजह से उप राष्ट्रपति बनने से पहले वेंकैया नायडू बोर्ड के सदस्य थे। यह परंपरा भी इस बार टूट गई है। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया। दो पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और अमित शाह बोर्ड में हैं पर गडकरी को नहीं रखा गया। एक परंपरा संगठन महामंत्री से अलग एक महामंत्री को रखने की थी, जो बोर्ड का सदस्य सचिव होता था। अनंत कुमार ने यह भूमिका काफी समय तक निभाई थी। इस बार अलग से सदस्य सचिव नहीं रखा गया है। माना जा रहा है कि पदेन सदस्य के तौर पर बोर्ड में शामिल संगठन महामंत्री ही यह भूमिका निभाएंगे।

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