रुपये का भाव संभालने की भारतीय रिज़र्व बैंक की कोशिशें अब नाकाम हो रही हैं। रुपये का मूल्य ना गिरे, इसके लिए रिज़र्व बैंक फरवरी के बाद से अपने भंडार से ४० बिलियन डॉलर बाज़ार में डाल चुका है। इसके बावजूद बाज़ार विशेषज्ञों का अनुमान है कि जल्द ही एक डॉलर ८० रुपये का हो जाएगा। संभव है कि इस साल के अंत तक डॉलर की कीमत ८२ रुपये तक पहुंच जाए। ऐसे में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव समेत कुछ विशेषज्ञों की ये सलाह गौरतलब है कि रुपये को संभालने की कोशिश में भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार को इस तरह ख़ाली नहीं करना चाहिए। ख़ास कर यह देखते हुए कि अगले छह से नौ महीनों में भारत को डॉलर में लिए गए २६७ बिलियन डॉलर के अल्पकालिक ऋण को चुकाना है। पिछले साल सितंबर में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में ६४२ बिलियन डॉलर थे। अब ५९३ बिलियन डॉलर बचे हैं।
जून में व्यापार घाटा २५ बिलियन डॉलर के भी ज्यादा हो गया, जो एक रिकॉर्ड है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की स्थिति देखते हुए यह सबका अनुमान है कि व्यापार घाटे को नियंत्रित करना फिलहाल संभव नहीं है। ऐसे बढ़ते आयात बिल और ऋण चुकाने पर होने वाले खर्च के परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा का संकट खड़ा हो सकता है। इसी बीच रुपये की कीमत संभालने के लिए भी डॉलर बाजार में डाले जाते रहे, तो संकट और बढ़ जाएगा। स्वस्थ अर्थव्यवस्था वह होती है, जिसमें आयात बिल का भुगतान निर्यात से होने वाली आय और विदेशों में रहने वाले देशवासियों की वापस भेजी जाने वाली कमाई से हो जाए। विदेशी निवेश के जरिए आई रकम को इस पर खर्च करना अपने-आप में समस्याग्रस्त बात है। वैसे भी निवेशक इस वर्ष ३० बिलियन डॉलर रकम निकाल चुके हैं। आगे वे और भी रकम निकालेंगे। कहा जा सकता है कि जिन नीतियों पर देश चला, उनकी कीमत चुकाने का वक्त तेजी से करीब आ रहा है। ऐसे में बुद्धिमानी यह है कि अब भी हाथ समेट कर और संसाधन जुटाने के अतिरिक्त उपाय करते हुए आगे बढ़ा जाए। ये संभव है, अगर अपने ‘हार्ड वर्क’ के अलावा ‘हार्वर्ड के विशेषज्ञों’ की राय पर भी ध्यान दें।
