गंगा नदी के पावन तट पर स्थित शुकतीर्थ उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में स्थित है। शुकतीर्थ पौराणिक पवित्र तीर्थस्थल है। इसे शुक्रताल के नाम से भी जाना जाता है।
महाभारतकालीन शुकतीर्थ से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र (अर्जुन के पौत्र) हस्तिनापुर के तत्कालीन
महाराज परीक्षित शिकार करते हुए भटक गए थे। भूख-प्यास से व्याकुल महाराज को एक टीले पर बैठे ऋषि शमिक दिखाई पड़े। राजा परिक्षित ने प्रणाम कर ऋषि शमिक से कई बार पानी मांगा, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे राजा क्रोधित हो गए। उन्होंने गुस्से में एक मरा हुआ सर्प उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना ऋषि शमिक के पुत्र ऋषि श्रृंगी तक पहुंची। उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया कि एक सप्ताह के अंदर तक्षक नाग उन्हें डस लेगा और उनकी जीवनलीला समाप्त हो जाएगी। मान्यता है कि इस श्राप से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए महाराज परीक्षित ने गंगा किनारे अक्षय वट के नीचे व्यासनंदन महामुनि शुकदेव जी के श्रीमुख से भागवत कथा का श्रवण किया था। इसके बाद उन्हें शाप से मुक्ति मिली।
मान्यता है कि भागवत पीठ शुकदेव आश्रम स्थित अक्षय वट वृक्ष के नीचे एक मंदिर का निर्माण किया गया था। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ही शुकदेव जी भागवत कथा सुनाया करते थे। यह वट वृक्ष आज भी यहां विद्यमान है। विशेष बात यह है कि इस वृक्ष पर कभी पतझड़ नहीं आता। शुकदेव आश्रम में एक यज्ञशाला भी है। अक्षय वृक्ष से 200 मीटर दूरी पर एक कुंआ है, जिसे पांडवकालीन कहा जाता है। आज भी देश भर से लोग इस वृक्ष के नीचे बैठ श्रीमदभागवत कथा सुनने को आते हैं। खास बात यह है कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना, गुजरात आदि से तो श्रद्धालु अपने साथ कथा व्यास लेकर आते हैं और अपनी मातृभाषा में श्रीमदभागवत सुनते हैं।
अनेक मंदिर हैं शुकतीर्थ में
शुकतीर्थ में अनेक मंदिर और कई देवी-देवताओं की विशाल प्रतिमाएं भी हैं। 76 फुट ऊंची हनुमानजी की प्रतिमा दर्शनीय है। इसके भीतर सात सौ करोड़ बार लिखे गए राम नाम समाहित हैं। इस छोटी सी तीर्थ नगरी में सौ से अधिक छोटे-बड़े मन्दिर और करीब इतनी ही धर्मशालाएं हैं।
वीतराग स्वामी कल्याण देव जी थे शुकतीर्थ के जीर्णोद्वारक
वीतराग स्वामी कल्याण देव जी महाराज का जन्म वर्ष 1876 में उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के गांव कोताना में उनकी ननिहाल में हुआ था। उनका पालन पोषण मुजफ्फरनगर के अपने गांव मुंडभर में हुआ। अपने 129 वर्ष के जीवनकाल में उन्होनें 100 वर्ष जनसेवा में गुजारे। वर्ष 1944 में प्रयाग में हुए कुम्भ में संतों की उपस्थिति में उन्होंने संगम तट पर गंगाजल हाथ में लेकर शुकतीर्थ के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया। पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1945 में उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एक पत्र लिखा। पत्र में शुकदेव आश्रम में श्रीमदभागवत के विद्वान वैदिकों से यज्ञ और उपदेश कराने की सलाह दी। उस दौरान देश के प्रमुख संतों के मार्गदर्शन में वीतराग संत ने शुकतीर्थ को विकसित किया। स्वामी जी ने करीब 300 शिक्षण संस्थाओं के साथ कृषि केन्द्रों, गोशालाओं, वृद्ध आश्रमों, चिकित्सालयों आदि का निर्माण कराया। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण उन्हें ‘शिक्षा ऋषि’ भी कहा जाता है। उन्हें सामाजिक कार्यों के लिये 1982 में ‘पदमश्री’, और वर्ष 2000 में ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। 14 जुलाई 2004 को पावन वटवृक्ष और शुकदेव मंदिर की परिक्रमा कर दिव्य संत ब्रह्मलीन हो गए।
श्री शुकदेव आश्रम स्वामी कल्याण देव सेवा ट्रस्ट द्वारा शुकदेव आश्रम में कल्याण देव स्मृति गैलरी बनाई गई है। गैलरी में स्वामी कल्याण देव जी के फटे पुराने कपड़े, लंगोटी, भिक्षा पात्र, छड़ी और खड़ाऊ आदि रखे हैं।
गैलरी में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर अटल जी और कलाम साहब सहित अनेक विख्यात शख्सियतों के साथ कल्याणदेव जी के फोटोग्राफ भी ध्यान खींचते हैं।
कल्याण देव जी की दूसरी पुण्यतिथि पर तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत पधारे थे। उन्होंने गैलरी के दर्शन कर कहा था कि “गैलरी में संत के जीवन से जुड़ी चीजों को देख राष्ट्र के कर्णधारों को प्रेरणा मिलेगी।”
वीतराग संत की 15 वीं पुण्यतिथि पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुकतीर्थ पधारे थे। उन्होंने 12 करोड़ की विकास योजना का शिलान्यास किया था। स्वामी जी के परम शिष्य व भागवत पीठ शुकदेव आश्रम, शुकतीर्थ के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद जी महाराज ने बताया कि आश्रम में स्वामी कल्याण देव संग्रहालय की स्थापना की जाएगी।
कैसे पहुंचें
दिल्ली से मुजफ्फरनगर वाया एनएच-58 131 किलोमीटर है। रेल और बस सेवा से दिल्ली से भली-भांति जुड़ा है।
मुजफ्फरनगर से शुकतीर्थ की दूरी करीब 26 किलोमीटर हैं। मुजफ्फरनगर के भोपा बस स्टैंड से प्राइवेट बसें लगातार और रोडवेज बस सेवा निर्धारित समय पर मुजफ्फरनगर डिपो से मिलती है। इसके अलावा मेरठ से वाया मवाना होते हुए भी श्रद्धालु धार्मिक नगरी में आ सकते हैं।
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पीके वशिष्ठ