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वेंकैया से बड़ी चुनौती धनखड़ की

उप राष्ट्रपति के नाते जगदीप धनखड़ की चुनौतियां पहले दिन से शुरू हो गई हैं। अगर संसद का मॉनसून सत्र समय से चार दिन पहले समाप्त नहीं हुआ होता तो वे इसी सत्र में बतौर सभापति राज्यसभा का संचालन करते। उनको अब यह मौका शीतकालीन सत्र में और नई संसद भवन में मिलेगा। अगर मौजूदा संसद में वे मॉनसून सत्र में सभापति के रूप में काम करते तो संसद की दोनों इमारतों में काम करने का उनका रिकॉर्ड होता। बहरहाल, उनके उप राष्ट्रपति बनने के साथ ही राजनीतिक घटनाक्रम ऐसा हुआ है कि उनके लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। उन्हें वेंकैया नायडू के मुकाबले ज्याद मुखर विपक्ष का सामना करना होगा।
इसका पहला कारण तो यह है कि लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं और विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी आदि का नैरेटिव बनाने के लिए संसद में शोर-शराबा करेगा। दूसरा कारण यह है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के आठ साल से ज्यादा हो गए हैं तो विपक्ष को भी लग रहा है कि एंटी इन्कंबैंसी बढ़ी है। इसका भी फायदा उठाने के लिए विपक्ष ज्यादा मुखर रहेगा। तीसरा और बड़ा राजनीतिक कारण यह है कि भाजपा की सबसे मुखर आलोचक पार्टी आम आदमी पार्टी है, जिसके सांसदों की संख्या १० हो गई है। आम आदमी पार्टी का मकसद अपने को सबसे मुखर और भाजपा का मुख्य विपक्षी बनाना है इसलिए उसके सांसदों को संभालना मुश्किल होगा।
धनखड़ की चुनौतियां बढऩे का चौथा कारण जनता दल यू है। उनके पद संभालने से ठीक पहले बिहार में एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, जिसमें जनता दल यू ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। राज्यसभा में भाजपा के पांच सांसद हैं, जिनमें से एक हरिवंश उप सभापति हैं। यह चुनौती दो स्तर की है। पहला तो यह कि जदयू विपक्ष में चली गई, जिससे एनडीए के सांसदों की संख्या कम हुई है। वैसे ही राज्यसभा में भाजपा और एनडीए को बहुमत नहीं है ऊपर से जदयू के सांसद कम हो गए। भाजपा के अपने ९१ सांसद हैं और अब पार्टी के पास कोई बड़ा सहयोगी दल नहीं है। बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस के नौ-नौ सांसदों को जोड़ कर भी आंकड़ा बहुमत से काफी कम है।
जगदीप धनखड़ के सामने कैसी चुनौतियां आने वाली हैं इसका अंदाजा उनके शपथ ग्रहण के दिन ही हो गया था। उनका शपथ ग्रहण समारोह ११ अगस्त को हुआ और किसी विपक्षी पार्टी का बड़ा नेता उसमें शामिल नहीं हुआ। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े के बारे में कहा गया कि उनकी सेहत ठीक नहीं है। सोनिया गांधी भी सेहत की वजह से नहीं शामिल हुईं, जबकि अधीर रंजन चौधरी अपने चुनाव क्षेत्र में चले गए थे। न्योता मिलने के बाद दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता भी शपथ में नहीं पहुंचे।

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