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विपक्ष से दूरी क्यों बना रहे हैं केजरीवाल?

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले दो हफ्ते में दो बार कहा है कि वे विपक्षी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने बहुत साफ तौर पर कहा कि भाजपा को हराने के लिए समूचे विपक्ष का एकजुट होना कारगर नहीं होगा। अब सवाल है कि थोड़े समय पहले तक विपक्ष के साथ एकजुटता बनाने के प्रयास मे शामिल रहे केजरीवाल ने क्यों अचानक दूरी बना ली है? वे क्यों अकेले लडऩे और पूरे देश में भाजपा को टक्कर देने की बात कर रहे हैं? क्या आम आदमी पार्टी की स्थिति ऐसी है कि वह पूरे देश में भाजपा को हरा सके या टक्कर दे सके?
पार्टी के राजनीतिक मामलों में सक्रिय रहे जानकार नेताओं का कहना है कि केजरीवाल दूरगामी तैयारी में लगे हैं। इसके अलावा उनको गुजरात विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले कुछ और राज्यों के चुनावों से बड़ी उम्मीद है। असल में केजरीवाल को लग रहा है कि गुजरात में वे अगर चुनाव जीत कर सरकार नहीं बनाते हैं तब भी उनकी पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी बन रही है। यानी कांग्रेस सिमट रही है और उसकी जगह आम आदमी पार्टी का उदय हो रहा है। भाजपा के साथ सीधी टक्कर वाले राज्य गुजरात में अगर सचमुच केजरीवाल की पार्टी मुख्य विपक्ष बन जाती है तो कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होगी।
केजरीवाल की पार्टी के एक जानकार नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि कांग्रेस और आप दोनों की दो दो राज्यों में सरकार है। दोनों के दो दो मुख्यमंत्री हैं। गुजरात चुनाव के बाद आप एक बड़े राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बन जाएगी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पूरे दम से लड़ेगी। इन्हीं में से दो राज्य कांग्रेस के शासन वाले हैं। केजरीवाल का मकसद उन राज्यों में कांग्रेस को हराने का है। अगर कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं होती है तो अपने आप अरविंद केजरीवाल की हैसियत बड़ी होगी।
ध्यान रहे देश में कोई दूसरी क्षेत्रीय पार्टी ऐसी नहीं है, जिसके दो मुख्यमंत्री हों। अगर दो मुख्यमंत्रियों के साथ एक नेता विपक्ष का पद भी आप के पास होता है और अगले चुनावों में कांग्रेस उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो आम आदमी पार्टी देश की नंबर दो पार्टी होगी। विधायकों की संख्या भले कम होगी लेकिन सबको पता है कि केजरीवाल उनकी प्रचार टीम नैरेटिव बनाने में कितनी माहिर है। उनका प्रयास अपनी हैसियत बढ़ाने और कांग्रेस की घटाने पर है। अगर वे इसमें कामयाब हो गए तो विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के हिसाब से वे खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का स्वाभाविक चेहरा बताएंगे। हो सकता है कि २०२४ के लोकसभा चुनाव में उनको इसका बड़ा फायदा न हो लेकिन वे कांग्रेस को रिप्लेस करने में कामयाब हो जाएंगे। ध्यान रहे भाजपा के अमित शाह जैसे बड़े नेता भी केजरीवाल को २०२९ के लिए चुनौती मान रहे हैं।

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