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यूरोप का नया भविष्य!

जियोर्जिया मेलोनी अब अपने को कंजरवेटिव और दक्षिणपंथी बताती हैं। लेकिन उनका वह अतीत बहुत दूर नहीं है, जब वे बेनितो मुसोलिनी की प्रशंसक थीं और उसकी फासिस्ट पार्टी से अपने तो जोड़ती थीं। दरअसल, इस चुनाव से पहले तक उनकी पहचान पोस्ट-फासिस्ट नेता की थी। पोस्ट-फासिस्ट उन दलों या नेताओं को कहा जाता है, जो मुसोलिनी की फासिस्ट विचारधारा में यकीन करते हैं, लेकिन मुसोलिनी ने जिस तरह सत्ता में आने के बाद अर्ध-सैनिक गुट बनाए थे, वैसा तरीका वे नहीं अपनाते। इसके बजाय संबंधित देश की संवैधानिक चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हुए सत्ता में आने का महत्त्वाकांक्षा रखते हैँ। मेलोनी अब इसी रास्ते सत्ता में आ गई हैं। उन्होंने दो धुर-दक्षिणपंथी दलों के साथ गठबंधन बनाया। उनकी सफलता के बाद मेलोनी को अब यूरोप में धुर दक्षिणपंथ का नया चेहरा माना जा रहा है। उनकी सफलता से यूरोप के कई देशों में धुर दक्षिणपंथी पार्टियां उत्साहित हैं। मसलन, मेलोनी की ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत के बाद उन्हें सबसे पहली बधाई हंगरी के धुर दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बान की पार्टी ने दी।
गौरतलब है कि इसी महीने यूरोपीय संसद में ऑर्बान की ‘निंदा के लिए प्रस्ताव लाया गया था, तब मेलोनी की पार्टी के सदस्यों ने उसके खिलाफ मतदान किया था। इसके अलावा पोलैंड की सत्ताधारी नेशनलिस्ट लॉ एंड जस्टिस पार्टी, स्वीडन की आव्रजक विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी और स्पेन की धुर दक्षिणपंथी वॉक्स पार्टी के साथ भी निकट सहयोग रहा है। इन तमाम पार्टियों को यूरोप की उदारवादी परियोजना के लिए खतरा माना जाता है। मेलोनी की महत्त्वाकांक्षा रही है कि इस मॉडल की पूरे यूरोप का प्रतिनिधि चेहरा बनें। जबकि आम समझ है कि ये मॉडल कामयाब हुआ, तो जो यूरोप बनेगा, उसमें जाहिरा तौर पर आज से कम नागरिक अधिकार मौजूद होंगे। समझा जा रहा है कि मेलोनी ने इसकी कामयाबी का मॉडल पेश किया है। विचाराधारा के साथ व्यावहारिकता का तालमेल बनाने की क्षमता की वजह से वे कामयाब हुई हैं। वे अस्पष्टता बनाए रखती हैं। इसलिए उनका पूरा उग्र रूप सामने नहीं आता।

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