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मुद्दा : बोल्सिनारो की हार, ब्राजील की जीत – के. विक्रम राव

क्यों हारे ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सिनारो। केवल दो मुद्दों की उपेक्षा के कारण। पर्यावरण तथा कोविड पर ध्यान नहीं दिया।
पचास लाख वर्ग किमी. के जैविक पिंड क्षेत्र अमेजन को अपार विध्वंस से नहीं बचा पाए। बिना मास्क के खूद घूमते थे। अपने अनुयायियों को नहीं बताते थे कि मास्क आवश्यक है। नतीजतन, पांच लाख लोग मर गए। कोविड ने ब्राजील को ग्रस लिया। भारत से प्राप्त कोवैक्सिन का उपयोग भी नहीं कर पाए। नरेन्द्र मोदी ने उन्हें गणतंत्र दिवस (२६ जनवरी, २०२०) पर विशेष अतिथि बनाया था। तब वे स्वामी नारायण मन्दिर के दशर्न के लिए भी गए थे।
नये राष्ट्रपति कौन जीते? पुराने सोशलिस्ट इग्नेशिया लूला डी सिल्वा बने। वे जेल भी काट आए। क्रान्तिकारी रहे। सड़क के किनारे जूता पॉलिश करते थे। धातु कारखाने की श्रमिक यूनियन के अगुवा बने। अपने दल का नाम रखा वर्कर्स पार्टी। फौजी तानाशाह से भिड़े, यातनाएं और कारावास भुगता। दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। लोकतंत्र स्थापित किया। सर्वप्रथम योजना चलाई छात्रों की पढ़ाई को विकसित करने के लिए। स्कूल में मध्यान्ह भोजन रखवाया। विश्व में सर्वाधिक ताकतवर अमेरिकी साम्राज्यवाद से लोहा लेकर लूला ने समतामूलक ब्राजील बनाया। विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय जननायक बने। फिर मोटरकार उद्योगपतियों के कुसंग की वजह से अकूत धन बटोरने के आरोप में सजा भुगती। जेल गए।
ब्राजील के संविधान में प्रावधान है कि वहां कोई भी दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता। यही वजह रही कि लूला को लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लडऩे से संवैधानिक तरीके से रोका गया। तब उन्होंने अपनी कैबिनेट की चीफ रह चुकीं रूसेफ का नाम प्रस्तावित किया। २००३ में डिलमा रूसेफ को राष्ट्रपति लूला की सरकार में ऊर्जा मंत्री नियुक्त किया गया था। २००५ से २०१० तक उन्होंने चीफ ऑफ स्टाफ के रूप में भी काम किया। पहले किसी भी निर्वाचित पद पर नहीं रहीं ६२-वर्षीय डिलमा रूसेफ ने वादा किया था कि वे लूला के रास्ते का अनुसरण करेंगी।
१९४७ मे जन्मीं रूसेफ के पिता बुल्गारिया के अनिवासी वकील और व्यवसायी थे। उनकी मां ब्राजील की एक स्कूल टीचर थीं। रूसेफ का झुकाव विद्यार्थी जीवन से ही समाजवाद की तरफ हो गया। उन्होंने १९६५ से १९८५ तक ब्राजील में रहे सैनिक शासन का विरोध किया था। १९७० से १९७२ तक जेल में रहीं। इस दौरान उन्हें बिजली के झटके तक दिए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और सिविल सेवा मे आ गई। २००५ से वे निवर्तमान राष्ट्रपति लूला के शासन में चीफ ऑफ स्टाफ रहीं।
रूसेफ को उनके कुछ समर्थक आयरन लेडी की उपाधि भी देते हैं।
विजयी राष्ट्रपति लूला के प्रतिद्वंद्वी पूर्व फौजी बोल्सिनारो बहुत घृणास्पद बातें करते थे। इस राष्ट्रपति ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि पुरुष-महिला के समान वेतन वाले नियम का वे खात्मा चाहते हैं। कारण : ‘महिला गर्भधारण करती है। छुट्टी ले लेती है।’ उनके आकलन में अरब देश तथा अफ्रीकी राष्ट्र मानवता की संचित गंदगी हैं। झाडऩा चाहिए। ब्राजील की सेना से रिटायर निवर्तमान राष्ट्रपति सैनिक शासन के हिमायती हैं। वह हत्या, विरोधी हैं, मगर तड़पा कर मृत्यु देने के पक्षधर हैं। फांसी को दोबारा कानून बनाना चाहते हैं।
बोल्सिनारो को ब्राजील का डोनाल्ड ट्रंप माना जाता है। वह नारी-द्वेषी हैं। उनके दो पुत्र हैं। तीसरी संतान बेटी है, जिसे वह ‘मेरे कमजोर क्षणों की देन’ कहते हैं। उनकी दृढ़ मान्यता है कि सेक्युलर गणराज्य की अवधारणा ही बेहूदी है, फिजूल है। ईश्वर सर्वोपरि हैं। उनकी मां ने उनका नाम रखा ‘जायुर मसीहा बोल्सिनारो’ क्योंकि वह मानती रहीं कि जीसस क्राइस्ट ने उनके पुत्र को भेजा है। पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं कि यदि अठारह-वर्ष से कम का व्यक्ति बलात्कार आदि घृणित अपराध करता है, तो उसे बालिग की भांति दंड मिले। इस पर विपक्षी सांसद तथा पूर्व मानवाधिकार मंत्री मारिया डी रोजारियो ने बोल्सोनारो को रेपिस्ट कहा। मगर राष्ट्रपति का प्रत्युत्तर था : ‘मारिया तो बलात्कार लायक भी नहीं हैं।’ तब अदालत ने उन्हें छह माह की सजा दी और दस हजार डॉलर का जुर्माना भी लगाया।
बोल्सिनारो का मानना है कि हिंसा शासन का अनिवार्य अंग है। एक टीवी इंटरव्यू में वे बोले कि ब्राजील को विकसित बनाना है, तो तीस हजार लोगों को गोली से उड़ा देना चाहिए। इसकी शुरुआत समाजवादी नेता प्रो. फर्नाडो हेनिरख कार्डेसो से हो। यह नेता ब्राजील के ३४वें राष्ट्रपति थे। समाजशास्त्र के निष्णात थे। मगर अब हार गए। लूला जीते। ब्राजील बच गया।

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