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मुद्दा बहुत बड़ा है

खबर है कि सेनेटरी नैपकिन बनाने वाली एक कंपनी ने बिहार की उस लड़की को मुफ्त नैपकिन्स देने की पेशकश की है, जिसने एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान सभी महिलाओं को ये उत्पाद मुफ्त में मुहैया कराने की मांग की थी। उस बच्ची से वहां मौजूद महिला आईएएस अधिकारी ने जिस असंवेदनशीलता से बात की, वह एक बड़ी खबर बनी है। अधिकारी के खिलाफ राष्ट्रीय महिला आयोग ने नोटिस भी जारी किया है। मीडिया में बने माहौल के बीच आईएएस अधिकारी को सार्वजनिक मांगनी पड़ी। उसके बाद ये कंपनी आगे आई।
मगर गौरतलब है कि उस बच्ची ने मांग खुद के लिए नहीं की थी। बल्कि उसने सेनेटरी नैपकिन्स को उन गरीब महिलाओं को उपलब्ध कराने को कहा था, जिनके पास इन्हें खरीदने का पैसा नहीं होता। बाद में उस लड़की ने मीडिया से कहा कि वह इन्हें खरीदने की स्थिति में है और मासिक धर्म के दिनों में स्वास्थ्य के तकाजे को भी समझती है।
ऐसे में अगर कंपनी किसी एक गरीब मोहल्ले को भी चुन लेती और वहां की सभी महिलाओं को ताउम्र फ्री नैपकिन्स देने का एलान करती, तो इसे कंपनी सेवा भावना माना जाता। लेकिन उसने उस लड़की के साहस की तारीफ करते हुए उसे नैपकिन्स देने की घोषणा की है, तो इसे यही मान जाएगा कि उसने इस विवाद से बने माहौल को अपने प्रचार का मौका बनाया है। इस तरह वह बड़े मुद्दे को तुच्छ बना रही है। इससे समाज की परिस्थितियों और सोच को बदलने में कोई मदद नहीं मिलेगी। जबकि इस विवाद से कई दूसरे अप्रिय पहलू भी उजागर हुए हैं।
इससे बिहार सरकार की मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना की हकीकत की कलई भी खुल गई है। यह सामने आया कि सरकारी स्कूलों में शौचालय या तो है नहीं, अगर है भी तो उसकी स्थिति इस्तेमाल करने लायक नहीं है। इस सवाल पर भी उस कार्यक्रम में मौजूद एक अधिकारी ने उतना ही असंवेदनशील रुख दिखाया। इस समस्या की तरफ ध्यान खींचने पर उसने बच्चियों से पूछा कि क्या तुम्हारे घरों में सबके लिए अलग-अलग शौचालय हैं? मुद्दा अधिकारियों का ऐसा नजरिया भी है, जो जारी समस्या का एक बड़ा पहलू है।

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