नई दिल्ली। विजय माल्या, ललित मोदी, जाकिर नाइक, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी…ये उन कुछ चर्चित भगोड़ों के नाम हैं, जिनके खिलाफ भारत ने इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस की गुजारिश की है। हालांकि इन सभी मामलों में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है। दरअसल, ऐसी मांगों के पीछे सिस्टम के दुरुपयोग के आरोपों के बाद इंटरपोल अब पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा खोजबीन और जांच-पड़ताल करने लगा है। इसी वजह से इन भगोड़ों के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने में देरी हो रही है। एक कार्यक्रम के इतर भारतीय अधिकारियों से बातचीत में इंटरपोल के सेक्रटरी जनरल जर्गेन स्टॉक ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से इस अंतरराष्ट्रीय पुलिस संस्था को सदस्य देशों द्वारा रेड नोटिस रिक्वेस्ट पर जांच-पड़ताल में ढीलापन बरतने के आरोप लगे हैं। उन्होंने बताया कि इस सिस्टम का कुछ देशों ने राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य वजहों से और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए दुरुपयोग किया है। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि स्टॉक ने कहा कि अब इंटरपोल ने टास्क फोर्स गठित कर दिया है जो प्रत्येक रेड नोटिस रिक्वेस्ट की गहन छान-बीन करता है। उन्होंने बताया कि 2017 से इंटरपोल ने 40 हजार से ज्यादा रेड नोटिसों की समीक्षा की है। दिलचस्प बात यह है कि इंटरपोल सेक्रटरी ने एक ऐसे मामले का भी हवाला दिया, जिसमें गलत व्यक्ति के खिलाफ रेड नोटिस जारी करने के लिए इंटरपोल पर जुर्माना भी लगा। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इंटरपोल को लिखकर उस केस की विस्तृत जानकारी मांग है, जिसमें इंटरपोल पर जुर्माना लगा था। इस अंतरराष्ट्रीय पुलिस संस्था ने जुर्माने की बात से तो इनकार नहीं किया है लेकिन केस के विवरण देने से इनकार किया है। भारत ने जिन चर्चित भगोड़ों के खिलाफ इंटरपोल में रेड कॉर्नर नोटिस का अनुरोध किया है, उनमें से ज्यादातर भगोड़ों ने अपने खिलाफ लगे आरोपों को राजनीति और धार्मिकता से प्रेरित बताया है। उदाहरण के तौर पर जाकिर नाइक और मेहुल चोकसी ने भारत पर खुद के खिलाफ धार्मिक और राजनीतिक कारणों से केस में फंसाने का आरोप लगाया है। अभी इनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस के भारत के अनुरोध की इंटरपोल समीक्षा कर रहा है।
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