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बलराम जंयती पर होती है हल की पूजा, संतान की निरोगी काया के लिए किया जाता है व्रत

आज बलराम जयंती है। स्त्रियां इस दिन संतान के लिए व्रत रखती हैं। अच्छी फसल और सुख-शांति के लिए इस दिन बलराम जी की पूजा की जाती है। इस दिन हल की पूजा की जाती है क्योंकि भगवान बलराम जी का पसंदीदा शस्त्र हल है। इसलिए इसे ‘हल छठ’ भी कहा जाता है।

भारत में बलराम जयंती सावन पूर्णिमा या रक्षा बंधन के छह दिन बाद मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार २०२२ में षष्ठी तिथि १६ अगस्त, मंगलवार को रात ०८:१७ से प्रारंभ हो रही है और १७ अगस्त, बुधवार को रात ०८:२० पर समाप्त हो रही है।
बलराम जयंती इस लिए मनाई जाती है क्यूंकि इस दिन भगवान कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। इस वजह से इसे बलराम जयंती के नाम से जाना जाता है। भगवान बलराम विष्णु जी के नौवें अवतार माने जाते है।
भगवान बलराम को देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान माना जाता है। भगवान बलराम कृष्ण जी के बड़े भाई हैं। भगवान बलराम को महान सर्प शेषनाग का भी अवतार माना जाता है। जिस पर विष्णु भगवान विराजमान होते हैं। इसलिए मान्यता है कि जो लोग भगवान बलराम की पूजा करते हैं या बलराम जयंती पर व्रत रखते हैं उनको स्वास्थ्य से सम्बंधित कोई बीमारी नही होती। भगवान बलराम को शक्ति का देवता भी माना जाता है। भगवान बलराम जी ने कई राक्षसों का वध भी किया है।
बलराम जयंती के दिन पूरी श्रद्धा के साथ विवाहित महिलाएं भगवान बलराम की पूजा-अर्चना करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन भगवान बलराम की मूर्ति को फूल और पत्तियों से सजा कर उनकी विषेष पूजा-अर्चना की जाती है। खास बात ये है कि इस दिन हल से जुती हुई किसी भी प्रकार की चीज़ नहीं खाई जाती है। जैसे अनाज, सब्जियां, जो भी हल के जरिए खेतों में उगती हैं, उसे नही खाया जाता है। महिलाएं इस दिन फल और पसहर चावल खाकर अपना व्रत करती हैं। इस दिन गाय के दूध का और दूध से बनी चीजों का भी प्रयोग नहीं किया जाता है।
बलराम जयंती भारत के हर राज्यों में अलग – अलग तरीकों से मनाई जाती है। गुजरात में इस दिन को रंधन छठ और बल्देव छठ के नाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेस में इसे छठी कहते हैं और संतान के लिए इस व्रत को रखा जाता है। भारत के उत्तरी राज्यों में इस पर्व को हलषष्ठी या हरछठ के नाम से भी पुकारा जाता है। शास्त्र के अनुसार भगवान बलराम का शस्त्र हल और मुसल है इसलिए इन्हें हलधर भी कहा जाता है।

बलराम जयंती कथा
एक बार भगवान बलराम यानी शेष नाग किसी बात को लेकर भगवान विष्णु जी से नाराज हो गए। भगवान विष्णु जी ने शेष नाग जी से पूछा कि आपके नाराज़ होने का क्या कारण है? तभी शेष नाग जी ने उत्तर दिया कि हे प्रभु! मैं हमेशा आप के चरणों में स्थित रहता हूँ। एक पल के लिए भी मुझे विश्राम का अवसर प्राप्त नहीं होता है। तभी विष्णु भगवान जी बोले कि कर्म क्षेत्र से हर प्राणी बंधा हुआ है। मैं भी अपने कर्म से बंधा हुआ हूँ। कर्म क्षेत्र से कोई भी विमुक्त नहीं हो सकता है। ये बात सुनकर शेष नाग जी बोले,” हे प्रभु ! आप की महिमा अपरम्पार है। आप चाहें तो पर्वत को राई और राई को पर्वत बना सकते हैं।”
शेष नाग जी की ये बात सुनकर भगवान विष्णु जी बोले कि मैं आप की भावनाओं का सम्मान करता हूँ और मैं आप को वचन देता हूँ कि द्वापर युग में आप मेरे बड़े भाई के रूप में जाने जायेंगे। विष्णु जी का ये वरदान सुनकर भगवान शेष नाग बहुत प्रसन्न हो गए। भगवान विष्णु के वचनों के अनुसार भगवान शेष नाग जी को द्वापर युग में विष्णु जी के बड़े भाई के रूप में जाना जाता है। भगवान कृष्ण जी भी भगवान विष्णु जी के ही अवतार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती भारतवर्ष में धूमधाम से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शेषनाग द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे।

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