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प्रथम विश्व युद्ध में 74,000 भारतीय हुए थे शहीद, अब दुनिया याद कर रही उनकी वीरता को

बेंगलुरु। आज से एक सदी भी पहले, जब भारत में समुद्र यात्रा को अशुभ माना जाता था, उस वक्त कुछ हजार या 2-4 लाख नहीं, बल्कि 11 लाख भारतीय सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। समंदर पार दूसरे देशों में अपने शौर्य, पराक्रम और जांबाजी का लोहा मनवाया। पहले विश्व युद्ध में करीब 74,000 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की कुर्बानी दी। आज प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति की 104वीं सालगिरह पर दुनियाभर में उनकी शहादत को याद किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रथम विश्व युद्ध के भारतीय शहीदों को याद किया है। पीएम मोदी ने अपने फ्रांस और इजरायल दौरे के दौरान प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए भारतीयों से जुड़े स्थलों की तस्वीर को ट्वीट किया है। तस्वीरों में पीएम मोदी शहीदों को श्रद्धांजलि देते नजर आ रहे हैं। पीएम मोदी ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भारत दौरे की भी एक तस्वीर को ट्वीट किया है, जिसमें दोनों राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली स्थित तीन मूर्ति-हाइफा चौक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देकर लौटते दिख रहे हैं।
104 साल पहले भारतीयों के लिए समुद्र यात्रा को लेकर सकारात्मक माहौल नहीं था। सामाजिक मान्यताओं के कारण लोग समुद्र मार्ग से यात्रा करना अशुभ मानते थे। आज के इतिहास में जिस घटना को दुनिया प्रथम विश्व युद्ध कहती है, उसके लिए लाखों अविभाजित हिंदुस्तानी नागरिकों को जिन्हें युद्ध कौशल में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था, को बड़े समुद्री जहाजों के जरिए युद्ध में भाग लेने के लिए ईस्ट अफ्रीका, फ्रांस, मिस्र, पर्शिया जैसे देशों में भेज दिया गया। 11 नवंबर को दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के समापन के तौर पर जानती है, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत की जीत हुई थी।
1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में अविभाजित हिंदुस्तान के हजारों सैनिकों ने हिस्सा लिया था। युद्ध समाप्ति के दिन को कॉमनवेल्थ देशों में इसे एक ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद किया जाता है। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों की भूमिका को पूरी दुनिया में सम्मान के साथ याद किया जाता है। रविवार को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने प्रथम विश्व युद्ध के शहीदों को याद किया। पिछले सप्ताह ब्रिटेन की संसद में प्रधानमंत्री टरीजा मे ने भी भारतीय सैनिकों को याद किया। उन्होंने कहा, ‘हम इस युद्ध विजय में उन 74,000 सैनिकों को नहीं भूल सकते जो अविभाजित भारत के नागरिक थे। उन सैनिकों ने संघर्ष किया और अपनी जान गंवाई, इनमें से 11 को उनके अदम्य साहस के लिए विक्टोरिया क्रॉस से भी सम्मानित किया गया।’ प्रथम विश्व युद्ध में भारत प्रत्यक्ष हिस्सेदार नहीं था, लेकिन अविभाजित भारत की इस युद्ध में भागीदारी जरूर थी। भारत से 13 लाख से अधिक आदमी और 1.7 लाख से अधिक जानवरों को युद्ध क्षेत्र में भेजा गया। इस युद्ध में 74,000 भारतीय सैनिक शहीद भी हुए और आज के रुपए की गणना में 20 बिलियन डॉलर से ज्यादा का धन भारत से युद्ध क्षेत्र में खर्च किया गया।
इस युद्ध में भारत के लिहाज से सबसे अधिक चिंताजनक बात थी कि युद्ध के लिए भेजे गए बहुत से भारतीयों को जरूरी कौशल प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया था। हालांकि, युद्ध में भेजी गई कुछ टुकड़ियां प्रशिक्षित थीं और उनकी साहसिक भागीदारी इतिहास में पूरे सम्मान के साथ याद की जाती हैं। मैसूर और जोधपुर लैंसर्स की टुकड़ियों ने जबरदस्त वीरता का परिचय दिया और हाईफा विजय के लिए इजरायल आज भी उनका आभार मानता है। पश्चिमी क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की साहसिक भागीदारी को लेकर कोई दो राय नहीं है। अविभाजित भारत से जिस जत्थे को युद्ध के लिए भेजा गया था वह बहुआयामी था। उसमें कई जाति, अलग-अलग भाषा बोलनेवाले शिक्षित, निरक्षर और अलग धार्मिक मान्यताओं वाले सैनिक थे। भारतीय सैनिकों के लिखित अवशेष पत्र या डायरी के फॉर्म में इस वजह से ज्यादा नहीं हैं। हालांकि, ब्रिटिश लाइब्रेरी में एक अनाम सैनिक का पत्र हाल ही में सार्वजनिक हुआ है, जिसमें सैनिक ने युद्ध की भयावहता की तुलना महाभारत के युद्ध से की। एक मुसलमान सैनिक मौलवी सरद-उद्दीन ने मुस्लिम सैनिकों के शव को धार्मि तौर-तरीकों से दफन किए जाने की मांग भी पत्र में की है।

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