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पुण्य तिथि पर स्मरण: वीरेंद्र प्रताप सिंह

हिंदी साहित्य में व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाने वाले मूर्धन्य व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की आज पुण्यतिथि है। उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी में हुआ था। हरिशंकर परसाई मूलत: व्यंग्य -लेखक थे। उनके व्यंग्य केवल मनोरजन के लिए नहीं है बल्कि, पाठकों का ध्यान समाज की उन कमज़ोरियों और विसंगतियो की ओर आकृष्ट करते हैं जो हमारे जीवन को दूभर बना रही हैं।
उनकी प्रमुख रचनाओं में
कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव;
उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल;
संस्मरण: तिरछी रेखाएँ;
लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, उखड़े खंभे , सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं, बस की यात्रा;
परसाई रचनावली (छह खण्डों में) शामिल हैं। ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए परसाईं जी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
हरिशंकर परसाई अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। वे कहते हैं- सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। १० अगस्त,१९९५ को परसाईं जी स्वर्ग सिधार गए। वह अपने पीछे हिंदी व्यंग्य साहित्य में एक ऐसा रिक्त स्थान छोड़ गए जिसे शायद कभी नहीं भरा जा सकेगा।
उनकी पुण्यतिथि पर हम उनकी रचनाओं से लिए गए कुछ शब्दों को पढ़ने का प्रयास करते हैं जिनमें तत्कालीन समाज की मानसिकता पर कटाक्ष किए गए हैं और यह आज भी प्रासंगिक है।

अमेरिका से आवारा हिप्पी और ‘हरे राम और हरे कृष्ण’ गाते अपनी व्यवस्था से असंतुष्ट युवा भारत आते हैं और भारत का युवा लालायित रहता है कि चाहे चपरासी का नाम मिले, अमेरिका में रहूँ।
– आवारा भीड़ के खतरे

बाजार बढ़ रहा है। इस सड़क पर किताबों की एक नई दुकान खुली है। और दवाओं की दो. ज्ञान और बीमारी का यही अनुपात है अपने शहर में। ज्ञान की चाह जितनी बढ़ी है उससे दुगनी दवा की चाह बढ़ी है। यों ज्ञान ख़ुद एक बीमारी है। ‘सबसों भले विमूढ़, जिनहिं न व्याप जगत गति.’ अगर यह एक किताब की दुकान न खुलती तो दो दुकानें दवाइयों की न खोलनी पड़तीं। एक किताब की दुकान ज्ञान से जो बीमारियां फैलाएगी, उनकी काट ये दो दवाओं की दुकानें करेंगी।
-अपनी अपनी बीमारी

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