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पश्चिमी देशों का बदलता नजरिया

पहले जर्मनी के चांसलर ओलोफ शोल्ज और फिर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यह कहा कि यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए रूस से बातचीत के लिए वे तैयार हैं। अब तक रूस से बात ना करने के सख्त रुख पर चल रहे इन देशों के नजरिए में आया यह बदलाव काफी कुछ कहता है। दरअसल, अब पश्चिमी राजधानियों में यह बात महसूस की जाने लगी है कि यूक्रेन को प्रॉक्सी बना कर रूस से युद्ध की उनकी रणनीति बिखर रही है। बीते हफ्ते यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उरसुला वॉन डेर लियेन के इस बयान से पश्चिमी देशों में लोग सदमे में नजर आए कि युद्ध में यूक्रेन के एक लाख सैनिक और २० हजार नागरिक मारे जा चुके हैं। ये मसला इतना बढ़ा कि वॉन डेर लियेन को अपना यह बयान वापस लेना पड़ा। वैसे यह बात इसके पहले अमेरिका के सेना प्रमुख जनरल मार्क मिले भी कह चुके हैं। बीते अक्टूबर में उन्होंने कहा था कि युद्ध में एक लाख से अधिक रूसी सैनिक मारे गए हैं और संभवत: इतने ही यूक्रेनी सैनिक मारे गए हैं।
इसके अलावा रूसी हमलों से यूक्रेन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को जो व्यापक नुकसान हुआ है, उसने वहां के लोगों को अंधकार और ठंड में जीने के लिए मजबूर कर दिया है। उधर यूक्रेन की मदद पहुंचे दूसरे देशों के ‘स्वयंसेवकों’ की भी बड़ी संख्या में मौत होने की खबर है। खुद पोलैंड ने स्वीकार किया है कि वहां से गए तकरीबन १,२०० ‘स्वयंसेवक’ मारे जा चुके हैं। उधर रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से यूरोप के देश ऊर्जा संकट और मुद्रास्फीति की ऊंची दर का सामना कर रहे हैं। ऐसे में कई यूरोपीय देश स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके संसाधन सीमित हैं, इसलिए अनिश्चित समय तक यूक्रेन को मदद देना उनके लिए संभव नहीं होगा। ऐसे में यूक्रेन की हार एक वास्तविक संभावना बन गई है। ये हार पश्चिमी देशों के जनमत के लिए गहरा सदमा होगी। तो संभवत: अब बातचीत से ऐसा हल निकालना उनकी प्राथमिकता बन गई है, जिससे पश्चिमी सरकारें अपनी जनता को युद्ध के सम्मानजनक शर्तों पर खत्म होने की कहानी बता सकें।

 

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