बच्चों के यौन शोषण और उससे संबंधित सामग्री को सोशल मीडिया पर परोसने और प्रसारित करने के मामले में 83 लोगों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो ने बड़ी कार्रवाई की है। देश के 14 राज्यों के 76 ठिकानों पर सघन तलाशी अभियान चलाया गया। तलाशी की इस मुहिम से पता चला है कि लगभग पूरे देश में अश्लीलता का यह जंजाल नशे के कारोबार की तरह फैल गया है। यही नहीं, अनेक महाद्वीपों में फैले सौ देशों के नागरिक इस गोरखधंधे में शामिल हैं। शहर तो शहर, मध्य प्रदेश के डबरा तहसील के ग्राम अकबई में भी बाल यौन शोषण से जुड़ी अश्लील फिल्में बनाने का कारोबार फैल चुका है। 31 सदस्यों वाला व्हाट्सएप समूह जांच का मुख्य केंद्र बिंदु है। इन आरोपियों को सूचीबद्ध तो कर लिया है, किंतु ताकतवर होने के कारण कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
पोर्न फिल्में बनाने और उन्हें अनेक सोशल साइट व एपों पर अपलोड करने के मामले में पिछले दिनों फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को भी मुंबई पुलिस ने हिरासत में लिया था। वे अश्लील फिल्में बनाने, बेचने और इससे धन कमाने के धंधे में शामिल थे। तीन महिलाओं ने उनके विरुद्ध शिकायत की थी। कुंद्रा के साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां अंतर्राष्ट्रीय पोर्नोग्राफी गिरोह के शिंकजे में भी पाई गई थीं। इस मामले में कुंद्रा को पोर्न फिल्म रैकेट का मुख्य साजिशकर्ता माना है। पता चलता है कि फिल्म, टीवी, सोशल मीडिया और आईटी कंपनियों की अनेक हस्तियां इस नीले कारोबार से जुड़ी हैं।
मोबाइल व कंप्यूटर पर इंटरनेट की घातकता का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले सीबीआई ने बच्चों के अश्लील वीडियो और फोटो बेचने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय रैकेट का पर्दाफाश किया था। इस मामले में मुंबई के एक टीवी कलाकार को भी गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसी के अनुसार आरोपी ने अमेरिका, यूरोप और दक्षिण एशियाई देशों में एक हजार से अधिक लोगों को ग्राहक बनाया हुआ था। सीबीआई ने इसे पास्को एक्ट व अन्य धाराओं के अंतर्गत गिरफ्तार किया है।
दिल्ली में भी इसी प्रकार की घटी एक घटना में 27 किशोर दोस्त सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर एक समूह बनाकर अपने साथ पढऩे वाली छात्राओं के साथ सामूहिक बलात्कार की षड्यंत्रकारी योजना बना रहे थे। ये सभी दक्षिण दिल्ली के महंगे विद्यालयों में पढ़ते थे और 11वीं व 12वीं के छात्र होने के साथ अति धनाढ्य परिवारों से थे। साफ है, स्मार्ट मोबाइल में इंटरनेट और सोशल साइटें बच्चों का चरित्र खराब करने का बड़ा माध्यम बन रही हैं और इस कारोबार में सेलिब्रिटीज शामिल हैं।
अश्लील सामग्री पर रोक की मांग सबसे पहले इंदौर के नागरिक कमलेश वासवानी ने सर्वोच्च न्यायालय से की थी। याचिका में दलील दी गई थी कि इंटरनेट पर अवतरित होने वाली अश्लील वेबसाइटों पर इसलिए प्रतिबंध लगना चाहिए, क्योंकि ये साइटें स्त्रियों एवं बालकों के साथ यौन दुराचार का कारण तो बन ही रही हैं, सामाजिक कुरूपता बढ़ाने और निकटतम रिश्तों को तार-तार करने की वजह भी बन रही हैं। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री को नियंत्रित करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं होने के कारण जहां इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, वहीं दर्शक संख्या भी बेतहाशा बढ़ रही है। ऐसे में समाज के प्रति उत्तरदायी सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह अश्लील प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण की ठोस पहल करे। लेकिन पिछले 15 साल से इस समस्या का कोई हल नहीं खोजा जा सका है।
लेकिन यहां सवाल उठता है कि इंटरनेट पर अश्लीलता की उपलब्धता के यही हालात चीन में भी थे। परंतु चीन ने जब इस यौन हमले से समाज में कुरूपता बढ़ती देखी तो उसके वेब तकनीक से जुड़े अभियंताओं ने एक झटके में सभी वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया। तब फिर यह बहाना समझ से परे है कि हमारे इंजीनियर इन साइटों को बंद करने में क्यों अक्षम साबित हो रहे हैं? चीन यहीं नहीं रुका, उसने अब गूगल की तरह अपने सर्च-इंजन बना लिए हैं। जिन पर अश्लील सामग्री अपलोड करना पूरी तरह प्रतिबंधित है।
इस तथ्य से दो आशंकाएं प्रगट होती हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में एक तो हम भारतीय बाजार से इस आभासी दुनिया के कारोबार को हटाना नहीं चाहते, दूसरे, इसे इसलिए भी नहीं हटाना चाहते क्योंकि यह कामवर्धक दवाओं व उपकरणों और गर्भ निरोधकों की बिक्री बढ़ाने में भी सहायक हो रहा है जो विदेशी मुद्रा कमाने का जरिया बना हुआ है।
अमेरिका, जापान और चीन से विदेशी पूंजी निवेश का आग्रह करते समय क्या हम यह शर्त नहीं रख सकते कि हमें अश्लील वेबसाइटें बंद करने की तकनीक और गूगल की तरह अपना सर्च-इंजन बनाने की तकनीक दें? लेकिन दिक्कत व विरोधाभास यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कोरिया और जापान इस अश्लील सामग्री के सबसे बड़े निर्माता और निर्यातक देश हैं। लिहाजा वे आसानी से यह तकनीक हमें देने वाले नहीं हैं। गोया, यह तकनीक हमें ही अपने स्रोतों से विकसित करनी होगी।
