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तो फिर ख़्वाजा साहब की दरगाह में सूफिज़्म का क्या मतलब है?

देश दुनिया में जब भी कट्टरवाद की घटनाएं सामने आती हैं तो बचाव में अजमेर स्थित सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को सामने खड़ा कर दिया जाता है। यही कहा जाता है कि ख़्वाजा साहब ने जो भाईचारे का पैगाम दिया, उसी के कारण आज दरगाह में मुसलमान से ज्यादा हिन्दू जायरीन आते हैं। ख़्वाजा साहब की दरगाह में धार्मिक रस्म निभाने वाले खादिम समुदाय के अनेक सदस्यों ने सूफीवाद से जुड़ी संस्थाएं बना रखी हैं। इन संस्थाओं का उद्देश्य भी हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे को बढ़ाना है। सूफिज्म से जुड़े साहित्य हिन्दू जायरीन को भी भेजे जाते हैं। इसका उद्देश्य भी यही बताना होता है कि ख्वाजा साहब की दरगाह कट्टरवाद से दूर है। यही वजह है कि हिन्दू समुदाय के लोग भी दरगाह में मोटा नजराना पेश करते हैं। ऐसा नजराना खादिमों और उनकी संस्था अंजुमन को भी दिया जाता है। अंजुमन को जो राशि प्राप्त होती है, उसे भी खादिम समुदाय के परिवारों पर खर्च किया जाता है। दरगाह के अंदर सूफिज्म को लेकर कार्यक्रम भी होते हैं। लेकिन सूफिज्म के केंद्र माने जाने वाली ख्वाजा साहब की दरगाह से जब कट्टरवाद के नारे लगते हैं तो सबसे ज्यादा हिन्दू समुदाय के वे लोग दु:खी और परेशान होते हैं जो पूरी अकीदत के साथ दरगाह में जियारत करते हैं। मीडिया रिर्पोट्स में कहा जा रहा है कि उदयपुर में जिस कन्हैयालाल टेलर की गर्दन तन से अलग कर दी गई, उस घटना के तार भी दरगाह के एक खादिम से जुड़े हैं। जांच एजेंसियां अब उस खादिम की तलाश कर रही है। दरगाह के खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमान मोईनिया फखरिया चिश्तियां सैय्यदजादगान के १० वर्षों तक अध्यक्ष रहे मोइन सरकार ने एक बयान जारी कर अंजुमन के मौजूदा एक पदाधिकारी की गतिविधियों से स्वयं को अलग कर दिया है। असल में अंजुमन के एक पदाधिकारी ने स्वयं को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के विचारों का समर्थक बताया है। इस पदाधिकारी का कहना है कि पीएफआई कोई अलकायदा जैसा संगठन नहीं है। हालांकि दरगाह के कुछ खादिमों ने अंजुमन की मौजूदा गतिविधियों से स्वयं को अलग कर लिया है, लेकिन सवाल उठता है कि जब दरगाह से कट्टरवाद को बढ़ाने वाली बातें होंगी तो फिर ख्वाजा साहब के सूफिज्म का क्या होगा? यह सही है कि भगवानों पैगम्बरों के साथ-साथ धार्मिक परंपराओं का भी सम्मान होना चाहिए। किसी को भी भगवानों और पैगम्बरों पर गैर जिम्मेदाराना टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए। यदि कोई गलत बयानी करता है तो उसके विरुद्ध कानून के मुताबिक कार्यवाही भी होनी चाहिए। लेकिन यदि गलती का जवाब कट्टरपंथ से दिया जाएगा तो भारत के सूफिज्म पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन खादिमों का क्या होगा जो सूफी मिशन चलाकर हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। न्यूज़ चैनलों पर दरगाह की सीढिय़ों पर हो रहे कट्टरवाद के वीडियो का लगातार प्रसारण हो रहा है। दरगाह में पिछले दिनों जो गतिविधियां हुई उसी का परिणाम है कि इस बार श्री जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा ख्वाजा साहब की दरगाह के सामने से नहीं निकलेगी। भगवान जगन्नाथ महोत्सव समिति के पदाधिकारियों से प्रशासन ने स्पष्ट कहा है कि मौजूदा हालातों में दरगाह के सामने से रथ यात्रा निकालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यानी साम्प्रदायिक सद्भावना की जो परंपरा वर्षों से चली आ रही थी, वह टूट गई है। रथ यात्रा जब दरगाह के मुख्य द्वार के सामने से निकलती थी तब मुस्लिम समुदाय खासकर खादिम वर्ग के लोग भी स्वागत करते थे। अजमेर में ऐसे कई धार्मिक जुलूस निकलते हैं, जिनका स्वागत दरगाह के बाहर होता रहता है। इनमें महावीर जयंती, चेटीचंड आदि के जुलूस प्रमुख है। हिन्दू समुदाय के धार्मिक जुलूसों का स्वागत दरगाह के बाहर इसलिए होता है क्योंकि ख्वाजा साहब की दरगाह को सूफिज्म का प्रमुख केंद्र माना जाता है। प्रशासन ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा को दरगाह के सामने से निकलने की अनुमति नहीं देकर परंपराओं के टूटने की शुरुआत कर दी है। ख्वाजा साहब की दरगाह सूफिज्म का केंद्र बना रहे यह सबकी जिम्मेदारी है। जो लोग दरगाह की सीढिय़ों पर खड़े होकर नारे लगवाते हैं, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि दरगाह के अंदर जो दो बड़ी देग हैं, उनमें तैयार तबर्रुख (चावल, मेवे व चीनी) पूरी तरह शाकाहारी होता है।

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