मुझे लगता है पूरी दुनिया बुरे राहु काल में फंसी है। हर तरफ मूर्ख, अकड़ू और कट्टर नेताओं को सत्ता मिली हुई है या मिल रही है। न डेमोक्रेटिक देश अपवाद हैं और न तानाशाह देश। नौ बड़े अमीर देशों पर गौर करें। अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडेन के आगे कट्टरपंथी गोरों के बल पर डोनाल्ड ट्रंप भारी चुनौती हैं। बाइडेन ने गुरूवार को कहा कि अमेरिकी लोकतंत्र ‘मेगा फोर्सेस’ से खतरे में है। मतलब डोनाल्ड ट्रंप के सपोर्टरों का ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का हल्ला अमेरिकी लोकतंत्र के लिए खतरा है। ये लोग देश को पीछे ले जाना चाहते हैं। सचमुच में डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी पर कब्जा बना कर उस पार्टी को उग्रवादी और सेमी फासिस्ट बनाते हुए हैं।
ऐसा यूरोप में भी होता हुआ है। मैक्रों वापिस राष्ट्रपति बने लेकिन संसद में कट्टर व एक्स्ट्रिम सांसदों का बोलबाला है। मेरा मानना है यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद यूरोपीय संघ ने जिस एकजुटता से रूस के खिलाफ गोलबंदी की है तो वह यूरोप में टकराव को स्थायी बनाना है। ब्रिटेन में लिज ट्रस प्रधानमंत्री बनीं तो उनसे वैसी ही अनिश्चितता और परेशानी बनेगी, जैसे जर्मनी में ओलाफ स्कोल्ज की कमान में है। स्कोल्ज उदार हैं, सोशल डेमोक्रेट हैं लेकिन हड़बड़ाए हुए हैं। तभी सर्दियों में जर्मनी सर्वाधिक बुरी दशा में होगा।
अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस के बाद इटली राजनीतिक अस्थिरताओं का मारा है तो जापान और कैनेडा में सब ठीक होते हुए भी दोनों देश अमेरिका और यूरोप की दशा से दबावों में हैं। इन सात के बाद आर्थिकी के नाते चीन और रूस पर गौर करें तो एक तरफ पुतिन का निरंकुश, कट्टर और अकड़ू मिजाज का राज हैं। वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग का रूख न केवल राक्षसी है बल्कि आत्मघाती भी है। कोविड और विकास रेट तथा ताइवान को लेकर राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने जैसा कट्टर और अकड़ू रवैया अख्तियार किया है उससे चीन का अपने आप बरबादी का रास्ता बनता हुआ है।
फिर आए भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका पर। क्या कहूं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति बोल्सोनारो और राष्ट्रपति रामफोसा पर जितना बताया जाए कम होगा। आप खुद ही समझें। जो हो, आने वाले सालों में देशों की आर्थिकियों, मंदी, बेरोजगारी, लड़ाई और देशों की सेहत तथा उनके बिगडऩे-बिखरने में वह कुछ होना है, जिसकी हम और आप कल्पना ही कर सकते हैं।
