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जीएसटी: पांच साल में बेमिसाल-निर्मला सीतारमण

आज हमारे देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू किए जाने के ५ साल पूरे हो गए हैं। इस पर पहली बार चर्चा वर्ष २००३ में अप्रत्यक्ष करों पर केलकर कार्यदल की रिपोर्ट में की गई थी और इस तरह से जीएसटी को मूर्त रूप देने में १३ साल का लंबा समय लग गया। वर्ष २०१७ से ही जीएसटी को स्वाभाविक रूप से शुरुआती समस्याओं का सामना करना पड़ा है। लेकिन शुरुआती समस्याओं से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि कोविड-१९ वैश्विक महामारी द्वारा ढाए गए व्यापक कहर और इसके बेहद प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने के बाद यह काफी मजबूती के साथ उभर कर सामने आया है। इसका श्रेय जीएसटी परिषद को जाता है क्योंकि उसके जरिए ही केंद्र और राज्यों ने न केवल संकट का सामना करने के लिए, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था को फिर से तेज विकास के रास्ते पर ले जाने के लिए एक-दूसरे का हाथ बड़ी मजबूती के साथ थाम लिया। यह एक साथ मिलकर काम करने का ही सुखद नतीजा है कि भारत इस वर्ष के साथ-साथ अगले साल के लिए भी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आया है, जैसा कि कई दिग्गज संस्थानों द्वारा अनुमान लगाया गया है।
वर्ष २०१७ में भारत में लागू होने से बहुत पहले ही कई देशों ने जीएसटी व्यवस्था को अपने यहां बाकायदा अपना लिया था। लेकिन भारत में जीएसटी परिषद का स्वरूप अपने आप में अद्वितीय है। भारतीय राजनीति के अर्ध-संघीय स्वरूप, जिसमें केंद्र और राज्यों दोनों को ही कराधान का स्वतंत्र अधिकार प्राप्त था, को देखते हुए इसके लिए एक अद्वितीय समाधान की नितांत जरूरत थी। विभिन्न आकार वाले राज्यों और विरासत में मिली अपनी कर प्रणाली के साथ विकास के विभिन्न चरणों से गुजर रहे राज्यों को जीएसटी के तहत एक साथ लाया जाना था। यही नहीं, राजस्व संग्रह के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के मामले में भी राज्य विभिन्न चरणों से गुजर रहे थे। इस तरह के हालात में एक संवैधानिक निकाय ‘जीएसटी परिषद’ और भारत के लिए अद्वितीय जीएसटी समाधान (दोहरा जीएसटी) की नितांत आवश्यकता महसूस की गई। कुछ अपवादों को छोड़ केंद्र और राज्यों दोनों के ही करों को जीएसटी में समाहित कर दिया गया। १७ अलग-अलग कानूनों का विलय कर दिया गया और जीएसटी के माध्यम से ‘एकल कराधान’ अमल में लाया गया।
भारत में जीएसटी परिषद ने जीएसटी के प्रमुख मुद्दों यथा दरों, छूट, व्यावसायिक प्रक्रियाओं और आईटीसी के संचालन इत्यादि पर राष्ट्रीय सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जुलाई २०१७ में ६३.९ लाख से भी अधिक करदाताओं ने जीएसटी को अपना लिया था। करदाताओं की यह संख्या जून २०२२ तक दोगुनी से भी अधिक बढ़कर १.३८ करोड़ से ज्यादा हो गई है। ४१.५३ लाख से भी अधिक करदाता और ६७ हजार ट्रांसपोर्टर ई-वे पोर्टल पर पंजीकृत हो गए हैं, जो प्रति माह औसतन ७.८१ करोड़ ई-वे बिल सृजित करते हैं। इस सिस्टम को लॉन्च किए जाने के बाद से लेकर अब तक कुल २९२ करोड़ ई-वे बिल सृजित हुए हैं, जिनमें से ४२ प्रतिशत ई-वे बिल विभिन्न वस्तुओं की अंतर-राज्य ढुलाई से जुड़े हुए हैं। इस साल ३१ मई को एक दिन में सबसे ज्यादा ३,१५६,०१३ ई-वे बिल सृजित किए गए थे।
औसत मासिक संग्रह २०२०-२१ के १.०४ लाख करोड़ रुपये से बढ़कर २०२१-२२ में १.२४ लाख करोड़ रुपये हो गया है। इस साल के पहले २ महीनों में औसत संग्रह १.५५ लाख करोड़ रुपये रहा। यह उम्मीद उचित है कि यह निरंतर वृद्धि का रुझान जारी रहेगा।
जीएसटी ने सीएसटी/वैट व्यवस्था के तहत भारतीय राज्यों के बीच मौजूद कर मध्यस्थता को समाप्त कर दिया है। एक हस्तक्षेप करने वाली नियंत्रण प्रणाली, जिसमें सीमा चौकियों को शामिल करना और माल से लदे ट्रकों का भौतिक सत्यापन शामिल था, से बाधाएं पैदा होती थीं, जिसके परिणामस्वरूप समय और ईंधन की हानि होती थी। परिणामस्वरूप कार्गो की आवाजाही के लिए लॉजिस्टिक, देश के भीतर भी, आवश्यक पैमाना और दक्षता हासिल नहीं कर पाया। माल की लागत में लॉजिस्टिक की लागत १५ प्रतिशत तक होने का अनुमान लगाया गया था।
आईजीएसटी के तहत और ई-वे बिल के साथ ऐसी कोई मध्यस्थता नहीं होने से, लॉजिस्टिक आपूर्ति श्रृंखला की क्षमता कई गुना बढ़ गई है। विभिन्न साधनों वाली परिवहन व्यवस्था पर हमारे विशेष ध्यान और अब पीएम गति शक्ति के कारण इन लाभों का बढऩा निश्चित है।
जीएसटी-पूर्व की व्यवस्था में, अधिकांश वस्तुओं पर, केंद्र और राज्यों की संयुक्त दरें ३१ प्रतिशत से अधिक थीं। हालांकि, जीएसटी के तहत ४०० से अधिक वस्तुओं और ८० सेवाओं की दरों में कमी हुई है। उच्चतम २८ प्रतिशत दर भोग और विलासिता की वस्तुओं तक ही सीमित है। २८ प्रतिशत की श्रेणी में कुल २३० वस्तुएं थीं, इनमें से करीब २०० वस्तुओं को कम दरों वाली श्रेणियों में स्थानांतरित कर दिया गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया गया है। उद्देश्य यह है कि उनके कर और अनुपालन का बोझ कम रखा जाए। समान रूप से, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण भी था कि वे आईटीसी के उद्देश्य के लिए आपूर्ति श्रृंखला के साथ एकीकृत रहें। इस संदर्भ में, दो महत्वपूर्ण कदम उठाए गए थे: वस्तुओं के लिए छूट सीमा को २० लाख रुपये से बढ़ाकर ४० लाख रुपये और तिमाही रिटर्न तथा मासिक भुगतान (क्यूआरएमपी) योजना की शुरुआत, जिसमें ८९ प्रतिशत करदाताओं को फायदा पहुंचाने की क्षमता थी।
शुरुआत के बाद से, जीएसटी का शासन आईटी आधारित और पूरी तरह से स्वचालित बना हुआ है। प्लेटफार्म के परिचालन के लिए पेशेवर रूप से प्रबंधित प्रौद्योगिकी कंपनी; जीएसटीएन का निर्माण सही दिशा में उठाया गया कदम था। हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर क्षमताओं की निरंतर समीक्षा और उन्नयन ने प्रणाली को कार्यकुशल रखने में मदद की है।
सीमा शुल्क द्वारा स्वचालित आईजीएसटी रिफंड की प्रणाली और जीएसटी अधिकारियों द्वारा निर्यातकों को संचित इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) की वापसी ने निर्यात वस्तुओं और सेवाओं पर इनपुट करों को निर्बाध व समस्या मुक्त बना दिया है।
उल्लेखनीय है कि जीएसटी मामलों से संबंधित अधिकांश मुकदमे आईटीसी तथा जीएसटी अधिकारियों को सम्मन जारी करने, व्यक्तियों की गिरफ्तारी, वसूली के लिए संपत्ति की कुर्की आदि जैसे प्रवर्तन के विभिन्न पहलुओं से संबंध में प्राप्त शक्ति के मुद्दों से जुड़े हुए हैं। यहां तक कि मोहित मिनरल्स बनाम भारत संघ मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए बहुचर्चित निर्णय में, न्यायालय ने जीएसटी की मूलभूत विशेषताओं को खारिज या परिवर्तित नहीं किया है।
२४ वर्षों तक पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री रहे असीम दासगुप्ता २०००-२०१० के दौरान राज्यों के वित्त मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष थे। जीएसटी कानूनों का पहला सूत्रीकरण २००९ में किया गया था। २ जुलाई २०१७ को व्यापारिक मामलों से जुड़े एक समाचार पत्र को दिए गए एक साक्षात्कार में जीएसटी की महत्वपूर्ण विशेषताओं, जोकि आज भी बरकरार हैं, पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा था: राज्यों को कभी भी सेवा कर लगाने की शक्ति प्राप्त नहीं थी। राज्य शुरू से ही महज [संग्रह किए गए] सेवा कर का एक हिस्से के बजाय इस कर को लगाने की शक्ति की मांग करते रहे हैं। जीएसटी के जरिए इस संबंध में प्रावधान कर दिया गया है।
उन्होंने कहा, उच्चाधिकार प्राप्त समिति राज्यों की स्वायत्तता के मामले में दृढ़ रवैया अपनाती रही है। प्रसंगवश जीएसटी परिषद, केन्द्रीय जीएसटी के मामले में संसद के लिए और राज्य जीएसटी के मामले में विधानसभाओं के लिए एक सिफारिशी निकाय है। तकनीकी रूप से, विधायिका इसे स्वीकार कर भी सकती है और नहीं भी। इस प्रकार, विधायिका की यह शक्ति नहीं छीनी गई है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दासगुप्ता ने कहा, जहां तक दरों का सवाल है, राज्य और केन्द्र मिलकर दोनों के लिए एक तरह का एकल कर स्वीकार कर रहे हैं। इसलिए, यह एक तरह से सहकारी संघवाद के हित में राज्यों और केन्द्र द्वारा किया गया एक आंशिक बलिदान है। जीएसटी, सेवा कर के मामले में राज्य को अतिरिक्त अधिकार दे रहा है। राज्य घरेलू उत्पाद में आधा हिस्सा सेवाओं का होता है।
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी के दो वर्ष पूरे होने पर अपने ब्लॉग में कहा था, …जीएसटी उपभोक्ता और कर निर्धारिती, दोनों, के लिए अनुकूल साबित हुआ है। करदाताओं द्वारा दिखाई गई सकारात्मकता और निर्धारिती द्वारा तकनीक को अपनाए जाने की वजह से जीएसटी ने वास्तव में भारत को एक एकल बाजार में रूपांतरित कर दिया है।

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