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जाति जनगणना की राहुल की बात भारत तोड़ो! – वेद प्रताप वैदिक

अपनी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने ‘भारत तोड़ो’ का नारा दे दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत में जातीय जनगणना फिर से शुरु की जानी चाहिए। २०११ में कांग्रेस पार्टी ने जातीय जन-गणना करवाई थी लेकिन भाजपा सरकार ने उस पर पानी फेर दिया। उसे सार्वजनिक ही नहीं होने दिया और अब २०२१ से जो जन-गणना शुरु होनी थी, उसमें भी जातीय जन-गणना का कोई स्थान नहीं है। राहुल गांधी इस वक्त जो कुछ कह रहे हैं, वह शुद्ध थोक वोट की राजनीति का परिणाम है।
वे चाहते हैं कि इसके बहाने वे पिछड़ी जातियों के वोट आसानी से पटा लेंगे। लेकिन यदि राहुल गांधी को कांग्रेस के इतिहास का थोड़ा-बहुत भी ज्ञान होता तो वह ऐसा कभी नहीं कहते। क्या मैं राहुल को बताऊँ कि अंग्रेज सरकार ने भारत में जातीय जन-गणना इसलिए चालू करवाई थी कि वे भारत के लोगों की एकता को तोडऩा चाहते थे। क्यों तोडऩा चाहते थे? क्योंकि १८५७ के स्वातंत्र्य-संग्राम में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेज सरकार की जड़ें हिला दी थीं।
पहले इन दो आबादियों को तोडऩा और फिर जातियों के नाम पर भारत के सैकड़ों-हजारों दिमागी टुकड़े कर देना ही इस जातीय जनगणना का उद्देश्य था। इसीलिए १८७१ से अंग्रेजों ने जातीय-जनगणना शुरु करवा दी थी। कांग्रेस ने इसका डटकर विरोध किया था। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरु ने जातीय जनगणना के विरोध में सारे भारत में जनसभाएं और प्रदर्शन आयोजित किए थे। इसी का परिणाम था कि १९३१ में ‘सेंसस कमिश्नर’ जे.एच.हट्टन ने जातीय जनगणना पर प्रतिबंध लगा दिया।
इस तरह की गणना कितनी गलत, कितनी अशुद्ध और कितनी अप्रामाणिक होती है, यह उन्होंने सिद्ध किया लेकिन कांग्रेस की मनमोहन-सरकार ने थोक वोटों के लालच में २०११ में इसे फिर से करवाना शुरु कर दिया। किसी भी पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया, क्योंकि सभी पार्टियां थोक वोट पटाने की फिराक में रहती हैं। इसके विरोध का झंडा अकेले मैंने उठाया। मैंने ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी आंदोलन’ शुरु किया। उस आंदोलन का विरोध करने की हिम्मत किसी नेता की नहीं पड़ी। यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी मुझे फोन कर के सहयोग देते रहे।
बाद में जो लोग देश के सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हुए, वे भी उस समय झंडा उठाकर मेरे साथ चलते रहे। मैं सोनिया गांधी को धन्यवाद दूंगा कि जैसे ही वे न्यूयार्क में अपनी माताजी के इलाज के बाद दिल्ली लौटीं, उन्होंने सारी जानकारी मुझसे मांगी और उन्होंने तत्काल जातीय जनगणना को बीच में ही रूकवा दिया। मोदी को इस बात का श्रेय है कि प्रधानमंत्री बनने पर उन्होंने जातीय जनगणना के जितने अधूरे आंकड़े इकट्ठे किए गए थे, उन्हें भी सार्वजनिक नहीं होने दिया। काश, उक्त बयान देने के पहले राहुल गांधी अपनी माँ सोनियाजी से तो सलाह कर लेते!

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