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जब सच बने शिकार

सच कैसे बड़ी ताकतों की लड़ाई की भेंट चढ़ जाता है, इसकी एक ताजा मिसाल संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग की संभावित शिनजियांग रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट का पश्चिमी देशों और चीन दोनों को बेसब्री इंतजार है। लेकिन इसको लेकर खींचतान इतनी ज्यादा है कि संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायुक मिशेल बैशले इसे कब जारी करेंगी, इस बारे में अब तक सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। बैशले के चार साल का कार्यकाल खत्म होने में एक हफ्ते से भी कम समय बचा है। खुद उनका कहना है कि अभी भी यह साफ नहीं हो पाया है कि रिपोर्ट कब प्रकाशित होगी। अमेरिका और कई दूसरे पश्चिमी देशों के जनप्रतिनिधियों ने शिनजियांग में उइगुर समुदाय के लोगों के प्रति चीन के बर्ताव को नरसंहार बताया है। चीन इस आरोप को नकारता आया है। मिशेल बैशले ने जब शिनजियांग की यात्रा की, उसके बाद प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने जो कहा, उससे चीन के दावे की पुष्टि माना गया था। तब पश्चिम का दबाव उन पर बढ़ गया।
नतीजा यह है कि उनकी रिपोर्ट को लेकर अनिश्चय बना हुआ है। पश्चिमी देशों का इल्जाम है कि इस प्रांत में कम से कम १० लाख लोगों को पुनर्शिक्षा शिविरों में कैद कर रखा गया है। ये अधिकांशत: उइगुर मुस्लिम हैं। इन्हें कई तरह के शोषण का सामना करना पड़ता है। इसमें महिलाओं के जबरन बंध्याकरण से लेकर जबरन मजदूरी तक शामिल है। लेकिन बैशले ने अपने दौरे के बाद बीते १८ सितंबर को अपने भाषण में इन आरोपों का कोई जिक्र नहीं किया। बल्कि मानव विकास की दिशा में चीन में हासिल हुई उपलब्धियों की उन्होंने सार्वजनिक तौर पर सराहना की थी। बैशले इस वर्ष मई में छह दिनों के लिए शिनजियांग गईं। उसके बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने शिनजियांग में मनमाने और विवेकहीन कदम उठाने से बचने के लिए कहा। ये अपील दोनों पक्षों से थी। लेकिन दोनों पक्ष अपने अनकूल रिपोर्ट चाहते हैं। इसी खींचतान का नतीजा है कि रिपोर्ट फिलहाल अधर में लटक गई है।

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