रायपुर। छत्तीसगढ़ की चुनावी जंग आमतौर पर दो ध्रुवों के बीच ही होती है, लेकिन इस बार अजीत जोगी और बीएसपी के गठबंधन ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 39 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों पर जोगी और बीएसपी फैक्टर का खासा असर देखने को मिल सकता है और यह चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है। दिसंबर में रायपुर की सत्ता किसके हाथ लगेगी, इसका फैसला इन सीटों पर जोगी-बीएसपी के प्रदर्शन पर भी निर्भर करेगा। ऐसे में यदि कांग्रेस और बीजेपी को अपनी-अपनी सीटों पर झटका लगता है तो फिर अजीत-माया किंगमेकर बन सकते हैं।
इस बीच अजीत जोगी और मायावती की जुगलबंदी को लेकर इस बात के कयास जोरों पर है कि आखिर इससे किसे ज्यादा नुकसान होगा, बीजेपी या फिर कांग्रेस को। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस अजीत जोगी और बीएसपी को एक-दूसरे की बी टीम करार दे रहे हैं। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि जोगी-बीएसपी के एक होने से उसे बहुत फर्क नहीं होगा बल्कि बीजेपी को ही झटका लगने वाला है। कांग्रेस की मानें तो 10 एससी सीटों में से 9 पर बीजेपी का कब्जा है और इस बार पार्टी को यहां झटका लग सकता है। इसकी वजह यह है कि इन सीटों पर सतनामी वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है, जिनमें अजीत जोगी की भी पैठ मानी जाती है। दूसरी तरफ बीजेपी का अपना गणित कहता है कि तीसरे मोर्चे का असर उन 29 एसटी सीटों पर ज्यादा देखने को मिलेगा, जिनमें से 18 कांग्रेस के पास हैं। इनमें से 9 सीटें ऐसी हैं, जहां माओवादियों का अच्छा-खासा प्रभाव है और यहां पहले राउंड में वोटिंग है। बुधवार को जोगी की सीट मरवाही में प्रचार करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा था, ‘कांग्रेस छोड़ने के बाद हमारे मित्र ने बीजेपी जॉइन क्यों नहीं की और बेवजह तीसरा मोर्चा बना लिया?’ इसके बाद गुरुवार को उन्होंने कहा कि जोगी की पार्टी कांग्रेस की बी-टीम है और उनके कार्यकाल में यहां आतंक का राज था। हालांकि जोगी अब तक यही कहते रहे हैं कि वह किसी के भी मित्र नहीं हैं।
पहले के चुनावों में पहले चरण में वोटिंग वाली माओवाद प्रभावित 18 सीटें सत्ता की कुंजी मानी जाती थीं, लेकिन 2013 के चुनाव में कांग्रेस 12 सीटें जीतने के बाद भी सत्ता तक नहीं पहुंच सकी। बीजेपी ने 10 में से 9 एससी सीटें और दूसरे फेस में 17 में से 8 एसटी सीटें जीतकर सत्ता की राह तय की। लेकिन, इस चुनाव में अजीत जोगी-बीएसपी का गठबंधन पुराने सभी समीकरणों को पलट सकता है। एससी-एसटी वोटों के अलावा ओबीसी समाज का वोट भी छत्तीसगढ़ की चुनावी दिशा तय करेगा। सूबे के ओबीसी वोटों में सबसे बड़ा हिस्सा साहू समाज का है, जो आमतौर पर बीजेपी के पाले में रहता है। कुल 45 फीसदी ओबीसी आबादी में साहू अकेले 22 पर्सेंट हैं। बीजेपी ने कांग्रेस की तुलना में अधिक साहू उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, ऐसे में इस बार भी साहू समाज के भगवा दल के साथ जाने की उम्मीद है।
