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चीन का सियासी दखल?

नेपाल की राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप नई बात नहीं है। जब से वहां राजतंत्र खत्म हुआ और कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रभाव बढ़ा, चीन की वहां खास भूमिका बनी है। हाल में ये संकेत जरूर मिले कि अमेरिका चीनी प्रभाव पर भारी पड़ रहा है। लेकिन अगले आम चुनाव के बाद ये सूरत फिर बदल सकती है। इस पृष्ठभूमि के कारण ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधिमंडल की मौजूदा नेपाल यात्रा खास हो गई है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय संपर्क विभाग के नए प्रमुख लिउ जियानचाओ के नेतृत्व मे ये दल चार दिन की नेपाल यात्रा पर है। लिउ उस समय यहां पहुंचे हैं, जब नेपाल में चुनाव का माहौल गरमा रहा है। साथ ही नेपाल की अलग-अलग कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच एकता की संभावना भी तलाशी जा रही है। लिउ और चीनी दल काठमांडू में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के प्रमुख केपी शर्मा ओली से भी मिलेगा। प्रश्न है कि क्या लिउ कम्युनिस्ट पार्टियों की एकता पर जोर डालेंगे?
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश संपर्क विभाग में जून में फेरबदल हुआ। तब लिउ को इसका प्रमुख बनाया गया। ये पद संभालने के तुरंत बाद उन्होंने दहल और ओली से वीडियो माध्यम से बातचीत की थी। अब वे काठमांडू पहुंच गए हैं। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों पर चीन का स्पष्ट प्रभाव रहा है। कुछ ही दिन पहले पुष्प कमल दहल ने समाजवादी विचारधारा में यकीन रखने वाली पार्टियों का मोर्चा बनाने की बात कही थी। यह कयास लगाया गया है कि क्या इसके लिए उन्हें लिउ ने प्रेरित किया? गौरतलब है कि नेपाल में चुनावी माहौल अब बनने लगा है। वहां निर्वाचन आयोग ने अपनी तरफ से संघीय और प्रांतीय विधायिकाओं के आम चुनाव के लिए १८ नवंबर की तारीख का सुझाव सरकार को भेज दिया है। फिलहाल, नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है। नेपाली कांग्रेस का रुख भारत और अमेरिका के पक्ष में समझा जाता है। जबकि कम्युनिस्ट पार्टियां चीन समर्थक मानी जाती हैं। अब यह देखने की बात होगी कि चीनी प्रतिनिधिमंडल के दौरे से इन पार्टियों की रणनीति कितनी प्रभावित होती है।

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