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चीन का अविश्वास

चीन ने पाकिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों की रक्षा का भार किसी चीनी एजेंसी को देने की मंशा जताई है। स्पष्टत: किसी अन्य देश की क्षमता पर अविश्वास करते हुए वहां अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चीन की समस्याग्रस्त सोच है।
बेहतर तो यह होता कि चीन इस प्रश्न पर विचार करता कि पाकिस्तान जैसे उसके दोस्त देश में उसकी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लेकर विरोध भाव क्यों फैलता जा रहा है? चीन इन्हें सबके फायदे के प्रोजेक्ट बताता है। लेकिन जिन लोगों के कथित लाभ के लिए उन्हें निर्मित किया जा रहा है, आखिर वे उससे क्यों खफा हैं? लेकिन इस पर विचार करने के बजाय वह अब पाकिस्तान में अपने सुरक्षा बल तैनात करना चाहता है। फिलहाल, पाकिस्तान गहरे आर्थिक संकट में है। चीन और सऊदी अरब ही दो ऐसे देश हैं, जो इस मौके पर उसकी मदद के लिए सामने आए हैं। इसलिए पाकिस्तान चीनी मंशा को कब तक ठुकरा पाएगा, कहना मुश्किल है। लेकिन किसी अन्य देश की क्षमता पर अविश्वास करते हुए वहां अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चीन की एक समस्याग्रस्त मानसिकता है। एक वेबसाइट की एक खास रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों की रक्षा का भार किसी चीनी एजेंसी को देने की मंशा जताई है।
गौरतलब है कि हाल में पाकिस्तान में कई चीन की परियोजना वाले कई ठिकानों पर हमले हुए हैं। उनमें चीनी नागरिकों की मौत भी हुई है। अभी आई खबर के मुताबिक चीन के अनुरोध को फिलहाल पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार नहीं किया है। लेकिन चीन ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार पर दबाव बना रखा है। चीन की महत्त्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत पाकिस्तान एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना है। वहां चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है। लेकिन हाल में चीनी प्रोजेक्ट वाले इलाकों की जनता में चीन विरोधी भावनाएं बढऩे के संकेत मिले हैं। बलूचिस्तान में इसको लेकर आंदोलन भी हुआ है। चीनी ठिकानों पर हुए आतंकवादी हमलों को इसी सिलसिले का हिस्सा माना गया है। जबकि आम समझ है कि अगर चीनी सुरक्षा एजेंसियों की तैनाती हुई, तो चीन के प्रति जनता में विरोध भाव और बढ़ेगा। खास कर ऐसा बलूचिस्तान में होगा, जहां पहले से ही चीन विरोधी भावनाएं प्रबल हैँ। बेहतर होगा कि चीन इन भावनाओं को समझने की कोशिश करे। वरना, उसके सुरक्षाकर्मी तैनात हो गए, तब भी वे दोषमुक्त सुरक्षा दे पाएं, यह संभव नहीं है।

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