यह एक सर्वविदित तथ्य है कि लिज ट्रस के आगे अगर कोई ब्रिटिश मूल का उम्मीदवार होता, तो वे शायद इतनी आसानी से कंजरवेटिव पार्टी के नेता का चुनाव नहीं जीत पातीं। ऋषि सुनक का भारतीय मूल का होना निश्चित रूप से उनके लिए नुकसान का पहलू साबित हुआ। वरना, योग्यता के लिहाज से सुनक ट्रस पर न सिर्फ बीस, बल्कि उससे कहीं ज्यादा भारी पड़ते हैं। बहरहाल, अब ब्रिटेन की बागडोर उस नेता के हाथ में है, जिसके ज्ञान और समझ को लेकर अतीत में लतीफे तक प्रचलित हुए हैं। और ये बागडोर उनके हाथ में उस समय आई है, जब ब्रिटेन पर आर्थिक चुनौतियों का भारी अंबार है। विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि लिज ट्रस के कार्यकाल में ब्रिटेन की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। इसमें शायद कोई दो राय नहीं है कि लिज ट्रस के प्रधानमंत्री बनने पर सरकार पर कर्ज़ के बोझ की स्थिति और ख़राब होगी। ट्रस ने टैक्स में भारी छूट देने का वादा किया है। साथ ही उन्होंने ऊर्जा संकट से जूझ रहे लोगों को अधिक राहत पहुंचाने का वादा भी किया है। जबकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कर्ज़ पर काबू पाने में सरकारों की नाकामी के कारण निवेशकों का भरोसा टूट रहा है।
उनके मुताबिक अगर अगली सरकार ने कर्ज़ और बढ़ाने वाली नीतियां अपनाईं, तो ब्रिटेन लंबी मंदी के दौर में फंस सकता है।
उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन पहले ही अब उन देशों में शामिल हो चुका है, जिन पर उनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बराबर कर्ज चढ़ गया है। २०२१ के पहले बीते छह दशक में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, जब ब्रिटेन में जीडीपी और कर्ज अनुपात १०० फीसदी हुआ हो। इसे ब्रिटेन की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का एक और संकेत माना जा रहा है। कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद से गहराते गए ऊर्जा संकट के बीच ब्रिटिश सरकार को बाजार से अधिक कर्ज़ लेना पड़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक अगले चार से पांच साल में ब्रिटेन पर उसकी जीडीपी की तुलना में १०० फीसदी से भी ज्यादा बने रहना सामान्य बात हो जाएगा। फिलहाल देश गहरे ऊर्जा संकट में है, जिसके बीच लोगों को राहत पहुंचाने पर सरकार को अपने खजाने से खर्च करना पड़ रहा है।
