भारत में लगभग पूरे साल चुनाव चलते रहते हैं फिर भी पार्टियों की चुनाव की भूख शांत नहीं होती है। अभी हिमाचल प्रदेश का चुनाव हुआ और उसके नतीजे ईवीएम में ही बंद हैं। गुजरात में चुनाव चल रहा है और दिल्ली में नगर निगम का चुनाव हो रहा है। अगले साल कोई आठ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इस बीच कई राज्यों में ऐसे राजनीतिक हालात पैदा हो रहे हैं, जिनसे मध्यावधि चुनाव की आशंका पैदा हो रही है। अभी के हालात को देखते हुए कम से कम तीन ऐसे राज्य हैं, जहां अलग अलग पार्टियों की सरकार है और वहां मध्यावधि चुनाव का अंदेशा जताया जा रहा है।
इन राज्यों में खास बात यह है कि तीनों में से किसी राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं है। एक राज्य में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार में जूनियर पार्टनर है और उसके मुख्यमंत्री रहे नेता सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं। बाकी दोनों राज्यों में भाजपा विरोधी सरकार है। बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र ये तीन राज्य ऐसे हैं, जहां अलग अलग कारणों से समय से पहले चुनाव होने का अंदेशा जताया जा रहा है। पक्ष और विपक्ष दोनों की पार्टियां समय से पहले चुनाव की तैयारी कर रही हैं।
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी और उसकी केंद्र सरकार ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार पर कई तरह से दबाव बनाया है। मुख्यमंत्री, उनके परिवार के सदस्यों, करीबी सहयोगियों और पार्टी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जांच चल रही है तो मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता पर भी चुनाव आयोग की तलवार लटकी है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री खुद ही चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने चुनाव के समय होने वाली तमाम लोक लुभावन घोषणाएं अभी कर दी हैं। आरक्षण की सीमा बढ़ा कर ७७ फीसदी करने से लेकर पुरानी पेंशन योजना बहाल करने और स्थानीयता नीति का बिल पास कराने सहित वे सारे काम करके इंतजार कर रहे हैं कि भाजपा का अगला कदम क्या होता है। विधानसभा का कार्यकाल २०२४ के अंत तक है।
झारखंड से सटे बिहार में वैसे तो सात पार्टियों का गठबंधन काफी मजबूत है इसके बावजूद सरकार २०२५ के अंत तक चल पाएगी, इसमें संदेह है। ऐसा कई कारणों से है। नीतीश कुमार के वापस पाला बदलने से लेकर उनकी पार्टी के राजद में विलय तक की चर्चा है। विलय के समय जदयू और गठबंधन की दूसरी सहयोगी कांग्रेस में टूट का अंदेशा भी जताया जा रहा है। इससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है। उधर महाराष्ट्र में भाजपा नेता बृहन्नमुंबई महानगर निगम के चुनाव का इंतजार कर रहे हैं। बीएमसी के चुनाव के बाद सरकार चलने की संभावना बहुत कम है। सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा ने शिव सेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है। पार्टी चाहती है कि अप्रैल-मई २०२४ में लोकसभा के साथ ही महाराष्ट्र का चुनाव हो जाए।



